पृथ्वी दिवस –पर्यावरण संरक्षण का संकल्प दिवस
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज .
पृथ्वी दिवस यह याद दिलाता है कि इसी दिन 22 अप्रैल 1970 को पूरे विश्व में आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके मूल में एक अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेलसन की घोषणा थी तथा एक टेलीविजन के कलाकार अलबर्ट की सूझबूझ थी।
छठे दशक में जब औद्योगीकरण से पर्यावरण के हानिकारक प्रभावों की जानकारी होने लगी तो सतत विकास की अवधारणा प्रकाश में आई जिसका तात्पर्य था की सामाजिक आर्थिक विकास की प्रक्रिया पृथ्वी के सहन शक्ति की सीमा तक ही होनी चाहिए।
1962 में वैज्ञानिक कारसड की पुस्तक –दी साइलेंट स्प्रिंग ,प्रकाश में आई जिसने कीटनाशक डीडीटी के प्रयोग से होने वाली हानियों की और दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया। 1968 में जीवविज्ञानी इदारलिच की पुस्तक –पापुलेशन बम ने मानव जनसँख्या ,संसाधन दोहन ,तथा पर्यावरण को स्पष्ट किया। धीरे धीरे वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों के बीच पर्यावरण और प्रदूषण एक विषय बनाता गया।
1972 में मैसाचूसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के युवा वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की –लिमिट्स टू ग्रोथ -जिसके माध्यम से इन वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया को चेतावनी दी की यदि विकास की गति धीमी न की गई तो पूरी दुनिया को पर्यावरण को लेकर भुगतना पडेगा। आज सारी दुनिया कोरोना संक्रमण को आखिर भुगत ही रही है। ,विगत पचास वर्षों में विश्वव्यापी सम्मलेन दुनिया के राष्ट्र करतेरहे ,प्रस्ताव पारित करते रहे पर उसे अमल में नहीं लाये।
पर्यावरण सम्बन्धी चिंताओं पर पहली बार 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन हुआ। इस सम्मलेन में पर्यावरण संरक्षण हेतु 26 प्रस्ताव तथा 106 सुझाव घोषणा पत्र में शामिल किये गए। 1983 में नॉर्वे के प्रधानमंत्री ब्रांड्टलैण्ड की अध्यक्षता में एक विश्व आयोग गठन किया गया जिसकी संस्तुति में –आवर कॉमन फ्यूचर में विकास को पर्यावरण संरक्षक के रूप में परिभाषित किया गया और यह कहा गया की आज के सन्दर्भ में ऐसे विकास ही अर्थपूर्ण होंगे जो वर्त्तमान पीढ़ी के साथ साथ भविष्य की पीढ़ी की भी आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति कर सकें।
इस आयोग की रिपोर्ट को दिशा देने के उद्देश्य से ,संयुक्त राष्ट्र संघ ने 3 जून 1992 को ब्राजील की राजधानी रियो डि जेनीरो में पृथ्वी सम्मलेन आयोजित किया जिसमे दुनिया के 182 देशों के लगभग बीस हजार प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।इस सम्मेलन में मुख्य रूप से यह निश्चित किया गया की दीर्घकालीन आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है ,इसके लिए सभी राष्ट्रों को एक नई वैश्विक साझेदारी कायम करनी होगी जिसमे सरकार के साथ साथ समाज की भी सहभागिता होनी चाहिए।
रियो सम्मलेन ने सारे विश्व का ध्यान पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नो पर आकृष्ट किया। सभी देशों के प्रतिनिधियों ने –ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता व्यक्त की और सम्पूर्ण मानव के लिए खतरे की घंटी बताया गया। इस सम्मलेन में विकसित और विकासशील देशों के मध्य स्पष्ट मतभेद भी उभर कर आया। पर्यावरण सम्बन्धी चिंताओं को सम्पन्नो की बिमारी के रूप में चित्रित किया गया।
22 अप्रैल 2016 के पृथ्वी दिवस को विशेष रूप से इसलिए याद किया जाता है की इस दिन जलवायु परिवर्तन का मुकाबिला करने के लिए पेरिस अग्रीमेंट –2015 पर दुनिया भर के देशों ने हस्ताक्षर किया और कुल ग्रीनहाउस गैस का पचपन प्रतिशत उत्सर्जित करने वाले देशों ने यह प्रतिबद्धता जताई की वे उत्सर्जन कम करेंगे।
सभी देश सहमत हुए की वैश्विक तापमान को औ द्योगिकीकरण के पूर्व दौर से दो डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देंगे। वैज्ञानिकों का मत है कि वैश्विक तापमान के इस स्तर को बनाये रखने पर ही दुनिया की सुरक्षा की गारंटी हो सकती है। चिंताजनक स्थिति यह है की विकसित और विकासशील देश अनुबंधों का व्यवहारिक पालन नहीं कर पा रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधन असीम नहीं होते अतः इनका उपयोग मर्यादा और संयम से होना चाहिए। जब तक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बलशाली वर्गों के हित में होता रहेगा प्रकृति और पर्यावरण के असंतुलन को रोका नहीं जा सकता। महॅगी परियोजनाओं की स्थापाना से भोगवाद का पोषण हुआ और सामाजिक दासता की वृद्धि हुई। प्रकृति की रक्षा के लिए आज आवश्यकता है की छोटी छोटी परियोजनाएं लागू की जाएँ। समाज के मशीनीकरण के बजाय मशीन का समाजीकरण किया जाये तभी कार्बन के उत्सर्जन को काम किया जा सकता है
भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार पृथ्वी हमारी माता है और आकाश हमारे पिता हैं। वायु ,जल ,सूर्य वन ,पर्वत ,पशु पक्षी हमारे देवता हैं हमारे आराध्य हैं ,हम ऐसे कृत्यों से बचते थे जिससे देक्गण कुपित न हों उनका अपमान न हो। पर आधुनिक मानव की राक्षसी लिप्सा ने उस वैज्ञानिक आध्यात्मिक संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट कर दिया। गंगा -यमुना जैसी पवित्र नदियाँ मल प्रवाहिनी हो गई ,हिमालय व्यथित हो गया ,पीपल के वासुदेव ,नीम की शीतला तथा तमाम वृक्ष काट डाले गए।प्रकृति के देवताओं के अपमान विनाश का ही कारण है –पर्यावरण असंतुलन।
आज पृथ्वी दिवस पर हम यजुर्वेद के मन्त्र के साथ संकल्प लें :
द्यौ शान्तिः अंतरिक्ष शान्तिः ,पृथ्वी शांतिः ,आपाः शांतिः ,औषधयः शान्तिः ,वनस्पतयः शान्तिः ,विशदेवा शांतिः ,ब्रह्मः शांतिः ,सर्वाः शांतिः ,शान्तिदेवाः शांतिः ,सा मा शान्तिरोधः
अर्थात आकाश में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो ,पृथ्वी पर शांति हो ,जल औषधियों और वनस्पतितों में शांति हो ,विश्वदेवों और ब्रह्म में शांति हो ,सर्व और सर्वत्र शांति हो तथा मुझे भी शांति प्राप्त हो।
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