प्रश्न ही प्रश्न !
डा अमिताभ शुक्ल की तीन कविताएँ
प्रश्न ही प्रश्न हैं ,
उत्तर सारे खो गए हैं ।। ज़ख्म ही ज़ख्म और मलहम नदारद , जिंदगी के प्रश्न जटिल तम हो गए हैं ।। बांस के पेड़ बहुतेरे. , बांसुरी नदारद , सुर सारे खो गए हैं ।। गेहूं बहुलता से मिल रहा , पर उगाने वाले सब खो रहे हैं ।। रखवालों के बीच में ही , कत्ल सारे हो रहे हैं ।। यौवन और जोश सारे , पर होश सब अपना खो रहे हैं ।। आत्मा और परमात्मा के खेल सारे , पर पिसाच सब अपना खेल खेल रहे हैं । । घरों में अपने रहते हुए भी , लोग गमगीन कितने हो रहे हैं ।। देवताओं के देश में भी , पाप अब कितने हो रहे हैं ।। सीधी राह से मंजिल मिलती नहीं , शॉर्ट कट अब कितने नए हो रहे हैं ।। लोग अपने घरों में कैद , और राह चलते हुए भी , सब्र अपना अब खो रहे हैं ।। जिंदगी और मौत के किस्से पुराने हो चुके हैं , पर जिंदगी के तजुर्बे नए हो रहे हैं l। न जिंदगी की खुशी , और न मातम मरने का , सारे खेल अब कितने आसान हो रहे हैं ।। प्रश्न ही प्रश्न…, पर उत्तर सारे खो रहे हैं ।।
जिंदगी एक अनदेखा ख्वाब …
जीवन एक गणित है , नाटक है , संग्राम है । हथेलियों में लिखा हुआ , भाग्य है। सारी विचित्रताआे के साथ , संसार है । सारे यत्न कर लीजिए , फिर भी दुर्भाग्य है । । या फिर , मनचाहा वरदान है। कभी शबनम तो कभी शूल , कभी कांटे तो कभी गुलाब है ।। पूर्व – जन्म का फल या फिर , इस जन्म का हिसाब है ।। जब मधुर पल हैं , तब गुलजार है । कठिन पलों में , बियाबान है।। जिंदगी बस जिंदगी है , न अपने बस में है , न उसके बस में है , बस एक अनदेखा , और अनजाना ख्वाब है।
एक नई बस्ती बसाई जाए
कहां जा कर रहा जाए ? जहां जीवन जिया जाए ? चांद पर रहा जाए ? या फिर कोई नया ग्रह , तलाशा जाए . ….? खगोल विज्ञानियों की निगरानी में , ऐसा कोई ग्रह तलाशा जाए . एलियंस को दोस्त बनाया जाए , या फिर नए ग्रहों पर , पैगाम भेजे जाएं . …? जरूरत है के इश्तहार , छपवाए जाएं . . ? , या फिर सब ग्रहों में , मुनादी करवाई जाए ? क्योंकि लगता है , वक्त रह गया कम है , पृथ्वी पर तो अब बस , अस्पताल बचेंगे , या फिर मास्क में , चेहरा छुपाए बाशिंदे , बचते – बचाते , दवाइयां खाते-खाते , भोजन करना , मुश्किल न हो जाए . इसलिए आइए साथ दीजिए , एक नई मुहिम शुरू कीजिए , एक नई बस्ती बसाई जाए , जहां केवल अन्न की फसल , उगाई जाए . कल – कारखाने न हों , न हो किल – किल , न दवा की जरूरत पड़े , न मास्क की . एक ऐसी बस्ती . … , कहीं चल कर बसाई जाए .
डॉ. अमिताभ शुक्ल .
” त्रासदियों का दौर” ,
काव्य – संग्रह , जनवरी 2021,
से