बहुत हिम्मती पत्रकार थे दिलीप अवस्थी

ज्ञानेंद्र शर्मा
ज्ञानेंद्र शर्मा

दिलीप अवस्थी की दो खास बातें थीं जो बहुत कम ही पत्रकारों में मिलती थीं। एक तो वे मौलिक चिंतक थे और दूसरे बहुत हिम्मती थे। अब यह बहुत कष्टप्रद है कि जिन दिलीप अवस्थी ने मेरे साथ और मेरे बिना भी इतना कुछ लिखा था, अब उनके बारे में हमें लिखना पड़ रहा है। अभी कहानी बहुत बाकी थी- वे स्वयं भी जानते थे इसलिए अस्वस्थ रहते हुए भी उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक राष्ट्रीय  मैगजीन के लिए काम करना शुरू किया था।

जब दिलीप अवस्थी एक प्रमुख मैगजीन के लिए काम करते थे तो एक दिन गुपचुप उन्नाव जेल के दरवाजे पर उन्होंने दस्तक दी और जुगाड़ ऐसी भिड़ाई कि अंदर प्रवेश पा गए। वे जेल के अंदर का हाल लिखना चाहते थे और बाहर आकर उन्होंने लिखा भी। बेहद हिम्मत का काम था जेल के अंदर ऐसे प्रवेश करना और वहॉ का ऑखों देखा हाल लिखना। 

लेकिन जब एक अंग्रेजी दैनिक में उन्होंने काम शुरू किया तो दिलीप अवस्थी ने कई वरिष्ठ  पत्रकारों के साथ संगतें कीं जो उनके बहुत काम आईं। कलम में पैनापन  तो आजन्म उनका साथी रहा। अपने इर्दगिर्द फैली समाचारों की चुनौती भरी दुनिया का उन्होंने जमकर दोहन किया और तभी तो जल्दी जल्दी उन्हें बड़े अखबारों में काम करने की जगह मिली। उन्होंने न तो इन बड़े अखबारों को निराश होने दिया और न ही अपने पाठकों को।

    ऐसे बहुत मौके थे लेकिन एक बार जब उनके पास काम करने के लिए कोई पत्र-समूह नहीं था तो उन्होंने मुझे अपने साथ लेकर एक न्यूज पोर्टल शुरू  किया। मैं तब एक अखबार में काम करता था, इसलिए ज्यादा समय पोर्टल के लिए नहीं दे पाया लेकिन उन्होंने मुझसे उसके लिए बराबर लिखवाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उसका उद्घाटन करने के लिए राजी किया। अब न्यूज पोर्टलों की बाढ़ है लेकिन जब दिलीप ने इसका बीड़ा उठाया तो बहुत कम लोग जानते थे कि यह पोर्टल किस बला का नाम है। लेकिन उन दिनों न्यूज पोर्टल को सपोर्ट करने के लिए विज्ञापन बहुत कम ही मिलते थे, इसलिए पोर्टल जड़ें नहीं जमा सका।

तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ  प्रताप सिंह के समय डाकुओं के खिलाफ तेज अभियान चला था और मैंने और दिलीप ने दस्यु-प्रभावित क्षेत्रों का व्यापक दौरा किया था। फूलन देवी पर हमने कई कहानियाँ  लिखीं और उसके गाँव भी हम गए। गाँव  के मुहाने पर कालपी में वन विभाग के रेस्ट हाउस में हम अक्सर रुकते थे।

‘समाचार भारती’ में काम करते हुए मैंने फूलन पर कई फीचर और समाचार लिखे और उसने जब सरेंडर किया तो हम दोनों घटनास्थल पर मौजूद थे। जब फूलन के गिरोह ने कानपुर देहात के बेहमई में कई ठाकुरों को गोलियों से उड़ा दिया था, तब भी हम साथ साथ बेहमई के दौरे पर गए थे। दिलीप की डाकुओं पर लिखी गई कई स्टोरी हिट हुई थीं। तमाम दुर्दान्त डाकुओं के कारनामों की फाइलें दिलीप ने बनाई थीं और उन्हें अपने कम्प्यूटर में भरा था।

दिलीप अवस्थी का सेंस आफ ह्यूमर गजब का था। उन्होंने दैनिक जागरण में बहुत से लेख लिखे और शायद  ही कोई लेख रहा हो जिसमें व्यंग का संपुट न हो। उनके इन लेखों का संग्रह प्रकाशित  भी हुआ और संग्रहणीय बना। राजधानी लखनऊ  पर कई लेख उन्होंने लिखे और लजीज खानपान उनकी पैनी  नजर से कभी बच नहीं पाए।

 उनके पिता एक यशस्वी  संगीतज्ञ थे और दिलीप ने भी तबला वादन का कोर्स उसी भातखण्डे संस्थान से किया जिसमें उनके पिताश्री बतौर प्रिंसिपल सुशोभित थे।

   जालंधर में पैदा हुए दिलीप मुझसे दस-ग्यारह साल छोटे थे। लखनऊ  के संजय गॉधी पीजीआई में दिलीप अवस्थी की किडनी का ट्रांससप्लान्ट हुआ था। उनकी पत्नी अल्का ने उन्हें अपनी एक किडनी दी थी। इस सर्जरी के बाद उनके कामकाज में कुछ शिथिलता आई जो स्वाभाविक थी क्योंकि उनके चलने-फिरने पर कई तरह के प्रतिबंध लग गए थे। तो भी वे काम करते और पत्रकारिता की अलख बुझने नहीं दी।

लेकिन पत्रकार दिलीप अवस्थी चाहने वालों को हमेशा  यह मलाल तो रहेगा ही कि वे इतनी जल्दी सबको छोड़कर चले गए।

ज्ञानेन्द्र शर्मा  , वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ

—-

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 × 1 =

Related Articles

Back to top button