ताली, थाली और लाठी
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अशोक कुमार शरण
कोविड 19 से लड़ने वाले योधाओ के उत्साह वर्धन के लिए हमने ताली बजायी, थाली बजाई और उसके बाद बिजली गुल कर मोमबत्ती जलाई, दीपक जलाये. लगभग सम्पूर्ण देश में यह समां बंधा तो कई लोग भाव विभोर हो गए. उसके बाद क्या हुआ? अब ये लाठिया खा रहे हैं. इन पर दोहरी मार पड़ रही है. एक तरफ तो सिर फिरे आम जन से पिट रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार ने इनका महंगाई भत्ता रोक कर जले पर नमक छिड़कने का कार्य किया है. यह सभी योद्धा सरकारी कर्मचारी हैं. मार तो अस्थायी है, सह लेंगे पर सरकार ने 18 महीने का इनका महंगाई भत्ता रोक कर जो आर्थिक चोट पहुचाई है उसकी भरपाई कैसे होगी. सरकार महंगाई रोकने के लिए प्रयास करे न कि इनका महंगाई भत्ता रोक कर इस महामारी में जी जान से जुटे इन कर्मचारियों को हतोत्साहित करे.
डाक्टर, नर्स एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मी प्रत्यक्ष रूप में कोविड 19 से अपनी जान की परवाह किये बिना हमारी जान बचा रहे हैं. हमारी सुरक्षा के लिए परोक्ष रूप से पुलिस कर्मी भी दिन रात एक किये हुए हैं ताकि उदंड किस्म के लोगों को रोक सके जो लॉक डाउन का उल्लंघन कर रहे है और कोरोना जैसी महामारी फ़ैलाने में सहायक बने हुए हैं. सफाई कर्मचारी चाहे वह अस्पताल की सफाई में हो, सडकों, गली मुहल्लों की सफाई में हो या दिल्ली जैसे शहर में आपके घरों से कूड़ा उठाने वाले जब गायब हो गए तो सरकार के सहयोग से सफाई कर्मियों ने यह भी जिम्मा उठाया. आज हम घरों में बंद है पर बिजली, पंखा, कूलर, ए.सी., टी.वी. सभी तो चल रहे हैं. इसको चलाने वाला वही सरकारी कर्मचारी है जो आपकी सुविधा के लिए घर से बाहर है. रेलवे कर्मचारियों को भी मत भूलिए. उन्होंने रेलगाड़ी के डब्बो को ही अस्पताल, कोरोनटीन सेंटर बना दिया है. जब डाक्टर और अस्पतालों के लिए पी.इ.पी. और वेंटीलेटर की कमी पड़ने लग गयी तो रेलवे कोच फैक्ट्री में इसका उत्पादन किया जाने लगा. लॉक डाउन के बावजूद जब भी सरकार का आदेश होता है सरकारी बसे ही लोगो को इधर उधर ले जाने का कार्य कर रही है. प्राइवेट ऑपरेटर तो कहीं दुबके बैठे हैं. आज सरकारी कर्मचारी आठ घंटे काम नहीं कर रहा है बल्कि इस आपातकाल जैसी स्थिति में उसके काम करने की कोई सीमा नहीं है. वह 12 से 18 घंटे काम कर रहा है. ऐसी स्थिति में सरकार ने उनका महंगाई भत्ता रोक कर उनसे अन्याय किया है.
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सरकारी कर्मचारियों द्वारा इतना कुछ करने के बावजूद भी तीन दुखद घटनाए प्रमुखता से सामने आ रही है विशेषकर डाक्टर, नर्स, अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के साथ. प्रथम, डॉक्टर सहित सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पी.इ.पी., मास्क आदि का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना. इसकी वजह से वे बड़ी संख्या में कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं. जब योद्धाओं के पास हथियार ही नहीं होंगे तो वे कैसे लड़ेंगे और हमारी रक्षा कैसे करेंगे. हमारी सरकार की प्राथमिकतायें पता नहीं क्या है? परन्तु विभिन्न प्रान्तों द्वारा इस बारे में दबाव डाला गया तो इसे प्राथमिकता में लिया गया और इन उपकरणों के लिए आपूर्ति आदेश पारित किये गए. दूसरा, नासमझ लोगो द्वारा इनके ऊपर हमला करना. आये दिन हम देख रहे हैं कि इलाज और कोरोनटीन के दौरान कोरोना के मरीज किस प्रकार इनके साथ मारपीट कर रहे हैं. इन सब से तंग आकर डाक्टरों के एसोसिएशन ने सरकार को पत्र लिख कर अपनी सुरक्षा की मांग की है. उसके बाद सरकार ने इस सम्बंध में एक सख्त अध्यादेश जारी किया है. यही हाल पुलिसकर्मियों के साथ भी है. भीड़ द्वारा उनको दौड़ा दौड़ा कर पत्थरों से मारा जा रहा है, कई बार अभद्र व्यवहार किया जा रहा है. पंजाब में तो एक पुलिस वाले का हाथ ही काट डाला. ऐसी घटनाये दिन प्रतिदिन देश के किसी न किसी कोने से सुनने में आ रही है. क्या इसके लिए हमने ताली और थाली बजाई, मोमबत्ती और दिए जलाये थे. ऐसे लोगो से सख्ती से निपटा जाना चाहिए. तीसरा, परन्तु सबसे दुखद और अमानवीय है. कई मकान मालिकों और हाउसिंग सोसाइटी द्वारा डाक्टर से मकान खाली करने के लिए कहना. उन्हें लगता है डाक्टर से उनके घर और कॉलोनी में कोरोना फ़ैल जायेगा. डाक्टर और नर्सो के दिल पर क्या बीतती होगी जो दिन रात, जी जान से हमारी जान बचने में लगे है और हम उनसे मकान खाली करवा रहे हैं.
पूंजीपति मीडिया ने सरकारी कर्मचारियों की छवि कामचोर और महाभ्रष्ट होने की बनाई है ताकि निजीकरण का गुणगान किया जा सके और बडे बडे सरकारी औद्योगिक कारखाने निजी क्षेत्र को सौप दिया जाये. सभी सरकारी प्रमुख विभागों रेलवे, रक्षा उद्योग, शिक्षा विभाग, एन.टी.पी.सी., बी.एस.एन.एल., एल.आई.सी., संचार आदि को निजी हाथ में सौप देने का एक दौर चला. इसमे से कुछ में वे सफल हो गए पर विरोध के बाद कुछ रुक गए. निजी क्षेत्र हर चीज में आम जनता से अंधाधुन्द पैसा कमाने की सोचता है. निजी क्षेत्र में जहां कोरोना के टेस्टिंग किट का मूल्य एक हजार रूपए के आस पास है वहीँ आई.आई.टी. दिल्ली ने यह किट चार सौ रुपये से कम में बना दिया. जो मीडिया हाउस, न्यूज़ चैनल, एंकर, खोजी पत्रकार सरकारी कर्मचारी को निठल्ला, भ्रष्ट बता कर निजीकरण का गुणगान कर रहे थे उन सब की कोरोना ने एक ही झटके में बोलती बंद कर दी. अब सरकार सहित जनता को सरकारी कर्मचारी याद आरहे है. यह जान लेना चाहिए कि देश निर्माण में इनकी भूमिका काफी अहम है.
डेढ़ साल के लिए सभी सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता रोक लिया जाना इन के साथ नाइंसाफी है. एक दिन का वेतन जो उन्होने प्रधान मंत्री केयर फंड या अन्य फंड मे दिया है वही महंगाई भत्ता से जादा है. यह भी सही है कि सरकारी कर्मचारी देश मे विषम परिस्थिति को देखते हुये इस विषय पर आंदोलन नहीं करने वाला है पर और लोग उनके पक्ष में अवश्य कहेंगे. राजनैतिक पार्टिया तो अवश्य ही यह मुद्दा उठायेगी. सरकार को इतनी सूझबूझ तो दिखाना चाहिये कि कौन सा अनावश्यक और अपव्ययी खर्चा है और कहां कटौती करना चाहिए.
सेन्ट्रल विस्टा की जो योजना है जिसमे प्रधानमंत्री आवास, उनका कार्यालय, उपराष्ट्रपति आवास, नया संसद भवन, सरकार के विभिन्न मंत्रालय आदि नये सिरे से बनाना फ़िलहाल अनावश्यक खर्चे है. इसके बजट मे 20,00,00,000/- रुपये का प्रावधान रखा गया है और जब तक यह बन कर तैयार होगा तो इसमे हजारों करोड़ रुपये का और इजाफ़ा हो जायेगा. इतना ही नहीं इसमे लैंड यूज बदला जायेगा. अर्थात इंडिया गेट से लेकर, इंदिरा गांधी कला केन्द्र, राष्ट्रपति भवन, रायसीना हिल्स तक पबलिक यूज के लिए जो जगह है सब चली जायेगी. सुरक्षा की दृष्टि से यह भी विचारणीय होना चाहिए कि क्या एक साथ देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद सहित सभी प्रमुख कार्यालय एक स्थान पर होने चाहिए. सरकार को इस महामारी से निपटने के लिए इस योजना को स्थगित कर देना चाहिए और सरकारी कर्मचारी जो इस विपदा को संभालने के लिए काम कर रहे हैं उनका महंगाई भत्ता जिसकी पहले ही घोषणा की जा चुकी है जारी कर देना चाहिए.
सरकार और संसद ने सांसदों के वेतन और भत्ते में इस आम चुनाव से ठीक पहले वाले वर्ष में काफी बढ़ोतरी की थी. वेतन पचास हजार रुपये से बढ़ा कर एक लाख रुपये, कार्यालय भत्ता पैंतालिस हजार से बढ़ा कर साठ हजार रुपये और मतदाता क्षेत्र भत्ता पैंतालिस हजार से बढ़ा कर पचहतर हजार रुपये कर दिया था. इसके अतिरिक्त फर्नीचर भत्ता भी पचहतर हजार रुपये से बढ़ा कर एक लाख रुपये कर दिया. अब कोविड 19 महामारी को देखते हुए सरकार ने सांसदों के वेतन में एक वर्ष के लिए तीस प्रतिशत की कटौती कर दी है. अर्थात लगभग पचास प्रतिशत बढ़ा कर तीस प्रतिशत कम करने का दिखावा. एक टर्म में ही सांसदों की संपत्ति किस प्रकार बढ़ जाती है यह तो सर्व विदित है. सांसदों के जीवनचर्या से सरकारी कर्मचारियों की तुलना नहीं की जा सकती है. अत: सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता रोकना किसी भी प्रकार उचित नहीं है.
सरकार ने पिछले वर्षों में बड़े उद्योगों को लाखो करोड़ रूपए की प्रत्यक्ष और परोक्ष सहायता दी है. इस समय उनको आगे आना चाहिए. इसके अतिरिक्त सरकार की तेल से बहुत आमदनी हुयी है. 2012 से 2014 तक तेल की कीमत 100 डालर प्रति बैलर के आस पास थी जो 2014 के बाद 50 डालर प्रति बैलर के आस पास आ गई. परन्तु सरकार ने तेल के खुदरा दामो में कमी नहीं की. इस प्रकार सरकार को लाखों करोड़ रुपये का फ़ायदा हुआ. अब इस वैश्विक महामारी के कारण तेल की कीमत जो एक दो वर्षो से ७०-७५ डालर प्रति बैलर चल रही है पुन: एक बार ५० डालर से नीचे आ गयी है, अर्थात सरकार को इस मद में काफी बचत होगी.
अत: सरकार को चाहिये कि अपने संसाधनों का उचित उपयोग कर स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाये. पी.इ.पी., टेस्टिंग किट, कोरोनटीन सेंटर आदि की व्यवस्था मे धन लगाये न कि KOVID 19 के योद्धाओं जिसमे अधिकतर सरकारी कर्मचारी है का वित्तीय सहायता रोक कर, उसे कुंठित, दंडित, हतोत्साहित कर उनके मनोबल पर प्रहार करे. इस सबके बावजूद सरकारी कर्मचारी अपना मनोबल बनाये रख कर देश और मानव सेवा मे लगे हुए है. सरकारी कर्मचारी जब तक अपनी ड्यूटी में मुस्तैद है तब तक ना तो सरकार और ना ही देशवासियों को इस महामारी से लडाई में चिन्ता करने की आवश्यकता है. स्थिति सामान्य होने के बाद इनके प्रति सरकार, आमजन, मीडिया, पूंजीपतियों का नजरिया बदलेगा.
लेखक सर्व सेवा संघ के प्रबंधक ट्रस्टी है. sharanashok@yahoo.co.in