एक बुजुर्ग किसान की मेहनत और सोच ने भेदी किस्मत
ड्रिप इरिगेशन सिस्टम बना बदलाव का जरिया
एक बुजुर्ग किसान की मेहनत और सोच ने मध्य प्रदेश के सागर ज़िले क़ुसमी गांव की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी हैं. उसने अपनी जिद-जुनून और जज्बे के सामने किस्मत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है.दीपेन्द्र तिवारी की रिपोर्ट :
सागर जिले की देवरी तहसील का एक ऐसा गांव जहां के किसान आज से करीब 10 साल पहले तक एक ढर्रे पर सोयाबीन, गेंहू, चना जैसी पारंपरिक फसलें लेने में ही विश्वास रखते थे. बेरोजगारी काट रहे युवा गांव की चैपालों पर ताश खेलते, बीड़ी का धुआं उड़ाते दिख जाते, कुछ समझदार प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की खाक छानते घूम रहे थे. लेकिन एक वृद्ध किसान की दूरदर्शी सोच और दृंढ निश्चय ने आज इस गांव की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी हैं. उसने अपनी जिद-जुनून और जज्बे के सामने किस्मत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है.
यूं बदली गांव की तस्वीर
आमतौर पर जिस उम्र में लोग अपने दायित्वों से मुक्त होने के बारे में सोचते हैं, उस उम्र में बदलाव की बयार का यह किस्सा ग्राम कुसमी में वर्ष 2011 से शुरू हुआ. करीबन 52 वर्ष की उम्र में स्वर्गीय श्री खुमान सिंह लोधी को सबसे पहले ड्रिप इरिगेशन के बारे में एक सरकारी योजना के तहत जानकारी मिली. ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को समझने के लिए स्वर्गीय खुमान सिंह ने सरकारी अधिकारियों की मदद से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपना चुके किसानों से मुलाकात की और पूरी प्रक्रिया समझने के बाद उन्होंने इसे अपनाने का मन बना लिया.
50 डिसमिल जगह से की शुरुआत
स्वर्गीय खुमान सिंह के पुत्र जगदीश बताते हैं कि ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से सब्जी उगाने की शुरूवात उनके पिता ने अपनी बंजर पड़ी जमीन के 50 डिसमिल हिस्से से की थी. जमीन में ड्रिप सिस्टम के पाईप बिछाते वक्त कई किसानों ने इसे स्वर्गीय खुमान सिंह का पागलपन तक कहा, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ. गांव के किसानों का तर्क था कि जहां खुला पानी देने के बाद गेंहू और चना जैसी पारंपरिक फसलें लेने में परेशानी आती है वहां बूंद-बूंद पानी से क्या होगा. इस सबके विपरीत स्वर्गीय खुमान सिंह किसानों को ड्रिप सिस्टम अपनाने के लिए प्रेरित करते रहे. साल 2019 में 59 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी देह त्याग दी, पर उनकी दूरदर्शिता का असर अब इस पूरे इलाके में दिखने लगा है. साल दर साल कुसमी के साथ ही साथ क्षेत्र के किसान ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपना रहे हैं.
पहली फसल ने बदल दी लोगों की सोच
कुसमी के ही एक अन्य किसान दयाराम रजक बताते हैं कि पहली ही बार में स्वर्गीय दादा खुमान सिंह की बंजर जमीन के मात्र 50 डिसमिल हिस्से में मिर्च की शानदार पैदावार हुई. करीब साल भर में मिर्च की इस फसल से उन्हंे दो लाख रूपए की आय हुई. इसके बाद तो गांव के ही नहीं आसपास के कई किसानों ने उनके पद चिन्हों पर चलने का मन बनाते हुए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपना लिया.
गांव से हो जाती है सब्जियों की खरीद
लगभग साल भर भारी मात्रा में सब्जियों की पैदावार होने से आमतौर पर उत्पादकों को सब्जी बेचने बाजार नहीं जाना पड़ता है. किसान परसादी कुर्मी बताते हैं कि जिले के साथ ही आसपास की छोटी-बड़ी सभी सब्जी मंडियों से लेकर दूसरे जिलों जैसे दमोह,जबलपुर, रायसेन, भोपाल और नरसिंहपुर जिले तक के व्यापारी खरीदी के लिए गांव ही पहुंच जाते हैं.
लगातार बढ़ रहा सब्जी उत्पादन का रकबा
लंबे समय से सब्जियों का उत्पादन कर रहे किसान सुखदेन सिंह पटेल कहते हैं कि आमतौर पर बैगन, टमाटर और मिर्च का उत्पादन लेने वाले क्षेत्र के किसान मौसम के मुताबिक गिल्की, करेला, लौकी, ककड़ी और शिमला मिर्च की भी फसलें उगाते हैं. सब्जी की फसल लेने के लिए हर वर्ष कुछ नये किसान तैयार होने से उत्पादन का रकबा लगातार बढ़ रहा है. अब किसान गर्मी में यहां तरबूज उगाने की तैयारी में भी जुटे हुए हैं.
कम जमीन में अधिक लाभ
सब्जी उत्पादक मनोहर कुर्मी कहते हैं कि सब्जी का उत्पादन कम जमीन में अधिक लाभ कमाने का बेहतर तरीका है. उनके परिवार में सदस्यों की संख्या के हिसाब से जमीन काफी कम है और कमाई का दूसरा कोई जरिया भी नहीं है. ऐसे में पारंपारिक के साथ ही सब्जी जैसी नकदी फसलों का उत्पादन उन्हें काफी सहारा देता है.
अब रोज़गार की नहीं चिंता
सब्जी उत्पादन से पूर्व क्षेत्र के छोटे किसानों का कृषि कर परिवार पालना कठिन था. ऐसे में कई किसान और उनके परिजन रोजगार की तलाश में शहरों का रूख कर लिया करते थे. इस बारे में आप बीती सुनाते हुए आठ एकड़ जमीन के मालिक कैलास रजक कहते हैं कि सब्जी उगाने से पूर्व मैं भी भोपाल में सुरक्षाकर्मी के रूप में 10 हजार रूपए महीने की आमदनी पर काम किया करता था. हालांकि अब हालात यह हैं कि कैलास जैसे युवा अपना गांव छोड़कर जाने के बारे में सोचते भी नहीं हैं.
आसपास के गांव में लहसुन की पैदावार
कुसमी से सटेग्राम मोकला निवासी किसान पवन पटेल कहते हैं कि फिलहाल हम पारंपरिक फसलों के साथ लहसुन की पैदावार ले रहे हैं. हालांकि इस वर्ष से मैंने भी टमाटर, बैगन सहित अन्य सब्जियों का उत्पादन करने की तैयारी कर ली है. पारंपरिक फसलों के साथ ही नकदी फसलें लेने से किसान काफी लाभ कमा रहे हैं.
सौर ऊर्जा का कर रहे उपयोग
ड्रिप इरिगेशन से सब्जी उत्पादन कर मिसाल बने कुसमी सहित आसपास के किसान सौर ऊर्जा का उपयोग करने में भी पीछे नहीं हैं. कुसमी सहित आसपास के गांव सिंगपुर गुंजन, मोकला, सुना, सूरादेही, डुंगरिया, डोंगर सलैया और परासिया के किसान ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से जहां पानी का सही उपयोग कर रहे हैं. वहीं सौर उर्जा को अपनाकर विद्युत की भी बचतकर रहे हैं.
सरकारी योजनाओं का मिल रहा लाभ
सरकारी योजनाओं के सवाल पर युवा किसान अनूप लोधी का कहना है कि समय-समय पर उद्यानिकी विभाग की ओर से उन्हें मार्गदर्शन मिलता रहता है. इसके साथ ही सरकारी योजनाओं के तहत किसानों को सौर विद्युत प्रकल्पों पर भी काफी छूट मिलती है.
रसायन मजबूरी, जैविक है जरूरी
मूल रूप से लहसुन और प्याज की खेती करने वाले डोंगर सलैया निवासी किसान कमलेश पटेल जैविक खाद व कीटनाशक को सबसे बेहतर मानते हैं. वे कहते हैं कि रसायन खाद व कीटनाशकों का प्रयोग करना किसानों की मजबूरी बन गई है. जबकि रसायन की जगह गोबर की खाद से सब्जियों का उत्पादन अधिक होता है.
दीपेन्द्र तिवारी @ देवरी/सागर