सरदार पटेल और भारत की एकता

देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय का अद्भुत कार्य किया

सरदार पटेल को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने बड़ी ख़ूबसूरती से भारत की उन सैंकड़ों रियासतों को भारतीय एकता के सूत्र में पिरोया और राजनीतिक  झंडे के अंदर शामिल किया , जो अंग्रेज़ी कूटनीति के चलते क़ानूनन आज़ाद हो गये थे .  प्रस्तुत है भारत के पहले गृह मंत्री सरदार  पटेल के इस राजनीतिक प्रशासनिक कौशल पर डा रवीन्द्र कुमार का लेख . 

अन्ततः वर्ष 1947 ईसवीं में हिन्दुस्तान को अँग्रेजी साम्राज्यवाद से देश के दो भागों में दुखद विभाजन के साथमिली स्वतंत्रता. साथ ही साढ़े पाँच सौ से भी अधिक देशी-राज्यों, स्वतंत्र होने वाले भारत में जिनके भविष्य केसम्बन्ध में 16 मई, 1946 ईसवीं की कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा में (जो अविभाजित भारत की स्वतंत्रताको केन्द्र में रखकर थी) गम्भीर उलझन उत्पन्न करने वाली स्थिति का निर्माण किया गया था I 

वह देश के राजनीतिक-भौगोलिक एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती थी। कैबिनेट मिशनयोजना की घोषणा में यह कहा गया था कि ब्रिटिश भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही, वह राष्ट्रमण्डल में रहेया न रहे, देशी राज्यों पर अब तक बनी रही सर्वोपरि सत्ता न तो ब्रिटिश सम्राट के हाथ में रहेगी और न ही(भारत की) नई (बनने वाली) सरकार के हाथ में सौंपी जाएगी। 

दूसरे शब्दों में, सभी देशी राज्यों में से प्रत्येक, छोटा या बड़ा, एक स्वतंत्र (इन्डिपेंडेन्ट) और स्वाधीन (फ्री) राज्यबन जाएगा। देशी राज्यों द्वारा सर्वोच्च सत्ता को सौंपी गईं उनकी सत्ताएँ उनके पास वापस आ जाएँगी, क्योंकिभारत की स्वतंत्रता के साथ ही उन पर से ब्रिटिश पैरेमाउंटसी का अन्त हो जाएगा । 

लेकिन, लॉर्ड मॉउन्टबेटन के भारत के वायसराय के रूप में आने के उपरान्त 3 जून 1947 ईसवीं की घोषणा में, जिसमें देश के दो भागों में विभाजन के साथ ही, भारत की ब्रिटिश सत्ता से स्वाधीनता का प्रावधान था, देशीराज्यों के भविष्य के सम्बन्ध में स्थिति परिवर्तित थी। 

अब देशी राज्यों पर से ब्रिटिश आधिपत्य के अन्त, लेकिन, साथ ही, उनके ब्रिटिश भारत के साथ घनिष्ठसम्बन्धों की स्थिति आशा के साथ, दोनों के मध्य, सद्भावना की अनिवार्यता का उल्लेख था। 

कहने का तात्पर्य यह है कि 3 जून 1947 ईसवीं की घोषणा में देशी राज्यों की स्वतंत्र भारत के साथ एकता कीनितान्त आवश्यकता की पूर्ति  की बात थी।

इसी उद्देश्य की पूर्ती के लिए –देशी राज्यों के भारत के साथ विलय, हिन्दुस्तान की राजनीतिक-भौगोलिकएकता के निर्माण हेतु, 5 जुलाई, 1947 ईसवीं को सरदार वल्लभभाई पटेल के अन्तर्गत देशी राज्य विभाग(स्टेट डिपार्टमेन्ट) की स्थापना हुई। सरदार पटेल ने विभाग का कार्यभार सम्भालते ही, केवल और केवल, राष्ट्रहित को समर्पित अपनी स्पष्ट नीति और दृढ़ कार्य पद्धति द्वारा देश की अखण्डता, एकता और पुनर्निर्माण केलिए कार्य प्रारम्भ किया। 

ऐसा कार्य, जो भारत के राजनीतिक-भौगोलिक एकीकरण की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण था ही, साथ ही वहअखण्ड हिन्दुस्तान की नीव पर इसके पुनर्निर्माण के लिए परमावश्यक भी था। 

सभी भारतवासी, सरदार पटेल के प्रति वैचारिक दृष्टि से मतभेदों के कारण अथवा उनकी कार्यपद्धति सेअसहमति के चलते उनके प्रति पूर्वाग्रह रखने वाले भी, सरदार पटेल के हर रूप में भारत के प्रति समर्पित रहकरकिए गए इस भगीरथ कार्य को नकार नहीं सकतेI

सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की अखण्डता, एकता और पुनर्निर्माण के लिए जो कुछ किया गया, वहभारत के इतिहास के सुनहरे पृष्ठों का अटूट भाग हैI सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में –विशेषकर स्वयंउनके अथक भगीरथ प्रयासों से जिस प्रकार विशालतम स्तर पर भारत की अभूतपूर्व एकता का निर्माण हुआ, वही एक कार्य उन्हें महानतम –कुछेक अतिश्रेष्ठ  भारतीयों की पंक्ति में सुशोभित करता हैI 

साढ़े पाँच सौ से भी अधिक देशी राज्यों का, जो स्वाधीनता के द्वार पर पहुँचे भारत के लगभग छह लाखवर्गमील क्षेत्रफल –अड़तालीस प्रतिशत भू-भाग को समेटते थे, और जो दूर-दूर, उत्तर से दक्षिण तक –दक्षिण मेंत्रावणकोर से लेकर उत्तर में जम्मू-कश्मीर, तथा पूरब में त्रिपुरा से लेकर पश्चिम में कलात तक, इस प्रकारसम्पूर्ण भारत में फैले हुए थे, अति सीमित समय में सरदार पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति और राष्ट्रहित को सर्वोपरिरखते हुए उनके द्वारा अपनाई गई अतिकुशल नीति द्वारा (उसे सफल रणनीति भी कह सकते हैं) भारतीय संघ मेंविलय हुआI 

वह कार्य इसलिए अभूतपूर्व था, क्योंकि हिन्दुस्तान अपने सम्पूर्ण इतिहास में, एक देश एक राज्य कीअवधारणा के अनुसार, विभाजन के कारण दो बड़े भू-भागों –पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के रूप में इससेपृथक होने के बाद भी, इसी के परिणामस्वरूप सरदार पटेल के नेतृत्त्व में सबसे विशाल स्वरूप में प्रकट हुआI 

भारत को इतने विशाल स्तर पर खड़ा करने –हिन्दुस्तान की अभूतपूर्व एकता का निर्माण करने के कारणमहानतम सरदार का विश्व-इतिहास में भी स्थान हैI

अंग्रेजी दासता से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अति सीमित समय में –लगभग दो वर्षों की अल्प समयावधि में, इतनेदेशी राज्यों, वह भी असमान (हैदराबाद जैसा बयासी हजार वर्गमील और शानपुर जैसा लगभग एक मीलक्षेत्रफल वाला राज्य) एवं बिखरी हुई स्थिति वाले क्षेत्रों के विलय के साथ ही, भारत की राजनीतिक एकता केनिर्माण का कार्य संसारभर में इस प्रकार के हुए अन्य कार्यों में सबसे विशाल थाI अधिकतम सहयोग, सामंजस्य और सौहार्द के वातावरण में –वार्ताक्रम एवं समझौते की प्रक्रिया द्वारा जो कार्य सरदार पटेल केनेतृत्व तथा निर्देशन में भारत में हुआ, वह हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार थाI इस रूप में ऐसा कार्य संसारके किसी भी देश में नहीं हुआI

महात्मा गांधी के साथ सीमांत गांधी बादशाह खान

देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय का कार्य –भारत की राजनीतिक एकता का निर्माण केवल एक विशालभू-भाग वाले देश –वृहद् भारत के उदय के उद्देश्य की पूर्ति तक ही सीमित नहीं थाI यह सैंकड़ों वर्षों सेविदेशिओं के हाथों पराधीन रहे हिन्दुस्तान के पुनर्निर्माण –इसकी समुचित सुरक्षा, सुदृढ़ता, अखण्डता, औरआर्थिक एवं सांस्कृतिक सहित अन्य सभी क्षेत्रों में प्रगति की सुनिश्चितता की आवश्यक शर्त भी थाI 

भारत की राजनीतिक एकता के निर्माण के यज्ञ को प्रारम्भ करते हुए 5 जुलाई, 1947 ईसवीं को, उसी दिन जबउन्होंने देशी राज्य विभाग का उत्तरदायित्त्व सम्भाला था, जो वक्तव्य सरदार पटेल ने जारी किया था, जिसकेमाध्यम से उन्होंने हिन्दुस्तान की एकता के निर्माण में देशी राज्यों के शासकों के साथ ही, प्रत्येक देशवासी –आम और खासजन का आह्वान किया था, वह स्थिति को पूर्णतः स्पष्ट करता थाI अपने वक्तव्य में सरदारश्री नेकहा था:

यह इतिहास का एक (सीखने योग्य) सबक है कि भारत को राजनीतिक दृष्टि से अपनी विभाजित स्थितिके कारण तथा एकत्रित और संगठित होकर आक्रमणकारिओं का सामना करने की हमारी असमर्थता केकारणआक्रमणकारिओं की एक के बाद दूसरी लहर के समक्ष हार माननी पड़ी थीहमारे आपसी संघर्षतथा झगडे़ और ईर्ष्याद्वेष भूतकाल में हमारे अधःपतन केएवं अनेक बार विदेशी प्रभुत्व के शिकार बनने केकारण सिद्ध हुए हैंहम एक बार पुनः उन त्रुटिओं को दोहराने का या उन फंदों में फँसने का खतरा मोल नहींले सकतेहम (अपने देश की) स्वतंत्रता के द्वार पर खड़े हैंयह सत्य है कि हम अन्तिम मंजिल में देश कीएकता और अखण्डता की रक्षा करने में पूर्णतः समर्थ (सिद्ध) नहीं हुएI  इस बात से हममें से अनेक को घोरनिराशा और अतिशय दुख हुआ है कि भारत के कुछ भागों ने (इससे) बाहर जाना और अपनी स्वतंत्र सरकारबनाना पसंद किया हैपरन्तु इस विषय में कोई सन्देह नहीं है कि इस अलगाव के बावजूद (हमारी) संस्कृतिऔर (मूल्यों व) भावनाओं की सदृशता  समानतापारस्परिक हितों के अनिवार्य तर्क से बलवती बनकरहम सबको प्रभावित करती रहेंगींयह बात उन देशी राज्यों के भारी बहुमत पर और भी अधिक लागू होगीजिन्हें अपनी भौगोलिक निकटता और संलग्नता के कारणतथा आर्थिकराजनीतिक एवं सांस्कृतिकअविच्छेद्य सम्बन्धों के कारण शेष भारत के साथ परस्पर सम्बन्ध बनाए (ही) रखने होंगेइन राज्यों की तथाभारत की सुरक्षितता एवं संरक्षणउनके विभिन्न भागों से एकता तथा पारस्परिक सहयोग का (अनिवार्यतः)स्मरण कराते हैंI”

सरदार वल्लभभाई पटेल के वक्तव्य से स्थिति पूर्णतः स्पष्ट थीI राजनीतिक एकता के साथ जीवन के प्रत्येकक्षेत्र में देश की प्रगति, हिन्दुस्तान की अखण्डता, एकता, राष्ट्रीय मूल्यों एवं संस्कृति की निरन्तरता औरसंरक्षण, सुदृढ़ता, तथा सम्पन्नता आवश्यक रूप से जुड़ी थीI विखण्डित –बिखरे हुए हिन्दुस्तान में यह सम्भवनहीं थाI सरदार पटेल ने अपने त्याग, अपनी मातृभूमि के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा, लगन और अथक परिश्रम के बलपर यह महान कार्य कियाI इसके माध्यम से भारतीयता की मूल भावना को, जो समन्वयकारी, विकासोन्मुख वअनेकता में एकता का निर्माण करने वाली भारतीय संस्कृति की अद्वितीय विशिष्टताओं से विकसित है, प्रकटकियाI अपने उक्त वक्तव्य में ही सरदार पटेल ने स्वयं भारतीय संस्कृति को राष्ट्रीय एकता और अखण्डता कामूल घोषित कियाI प्रत्येक भारतीय से उसके परम कर्त्तव्य के रूप में, समदेशिओं के साथ एकबद्ध होकर, प्राणदायी और कल्याणकारी हिन्दुस्तानी संस्कृति के संरक्षण की आशा कीI सरदार पटेल का आह्वान था:

यह देश अपनी विभिन्न संस्थाओं के साथउसमें बसने वाले लोगों की गौरवपूर्ण विरासत हैयह एकआकस्मिक घटना है कि कुछ लोग देशी राज्यों में रहते हैं और कुछ ब्रिटिश भारत में रहते हैपरन्तु सभी(विभिन्नताओं या अनेकताओं में एकता स्थापित करती) भारत की संस्कृति तथा चरित्र में सामान रूप सेभागीदार हैंहम सब आत्महित से जितने परस्पर जुड़े हुए हैंउतने ही रक्त और भावनाबन्धनों से भी एकसाथ जुड़े हुए हैंकोई भी हम लोगों को एकदूसरे से पृथक नहीं कर सकताहमारे मध्य अलंघ्य दीवारेंखड़ी नहीं की जा सकतीं…I मैं अपने मित्रों –देशी राज्यों के राजाओं और …जनता को निमंत्रण देता हूँ कि(वे)अपनी मातृभूमि की भक्ति से हम सभी के समान कल्याण हेतु प्रेरित होकर (राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, देश के पुनर्निर्माण, सुदृढ़ता और सम्पन्नता के लिए) इस संयुक्त प्रयत्न में सहयोग और मित्र भावना सेसम्मिलित होने के लिए आएँ…I”

सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत की एकता के निर्माण का बीड़ा उठायाI देश की एकता व अखण्डता के बलपर सम्पूर्ण देश की सुरक्षा और सम्पन्नता की सत्यता देशी राज्यों के शासकों के हृदयों की गहराई तक पहुँचीI यही कारण था कि अधिकांश देशी राज्यों के शासकों ने सरदार पटेल के सन्देश को भली-भाँति अंगीकार करतेहुए, जैसा कि कहा है, वार्ताक्रम और सुखद समझौते की प्रक्रिया से गुजरते हुए, सहर्ष भारतीय संघ का भागबनना स्वीकार कर लियाI

कुछ एक –गिने-चुने शासकों, जैसे कि त्रावणकोर के महाराजा चिथिरा थिरूनल बलराम वर्मा, तो भी, अपनीस्वाधीन सत्ता –स्वतंत्र त्रावणकोर का सपना देखते थेI उन्हीं की ओर से उनके प्रधानमंत्री –दीवान राममस्वामीअय्यर ने 1946 ईसवीं ही में त्रावणकोर राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की इच्छा प्रकट कर दी थीI साथ हीयह इच्छा भी सार्वजनिक कर दी थी कि स्वतंत्र त्रावणकोर की सत्ता स्वयं यह निर्णय लेगी कि वह भारतीय संघके साथ जुड़ेगा या नहींI त्रावणकोर की ऐसी नीयत के पीछे मुहम्मद अली जिन्ना का उकसावा थाI अय्यर कीब्रिटिश सरकार के साथ गुप-चुप सन्धि भी थी और, इसीलिए, स्वतंत्र त्रावणकोर के उनके स्वप्न को अंग्रेजों कासमर्थन भी प्राप्त थाI इसका सर्वप्रमुख कारण त्रावणकोर क्षेत्र में बड़ी मात्रा में पाया जाने वाला मोनाजाइट, जिसका इतालियन में उच्चारण मोनजीते होता है, और मैं भी यदा-कदा ऐसा ही करता हूँ, नामक खनिजपदार्थथाI अंग्रेजों को स्वतंत्र त्रावणकोर से उस खनिजपदार्थ के मिलने पर परमाणु हथियारों की अपनी प्रतिस्पर्धा कोसुदृढ़ कर पाने की पूरी-पूरी आशा थीI

जोधपुर के महाराजा हनवन्त सिंह एक हिन्दू राजा थेI जोधपुर की अधिकांश जनसँख्या भी हिन्दू थीI तो भी, हनवन्त सिंह को ऐसा लगता था कि पाकिस्तान के साथ जुड़ने पर उन्हें अधिक लाभ होगाI जिन्ना ने उन्हेंकराची बंदरगाह के पूरे-पूरे उपयोग के साथ ही अनेक और सपने दिखा रखे थेI

भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान भली-भाँति यह जानते हुए कि वे एक हिन्दू बहुमत वाले राज्य के शासक हैं; भोपाल राज्य को भारत से न जोड़ने के उनके निर्णय को वहाँ की जनता कदापि स्वीकार नहीं करेगी, अपनेमुस्लिम लीग प्रेम और उससे निकटता के कारण प्रारम्भ में भोपाल के भारत के साथ विलय का घोर विरोधकरते रहे थेI हमीदुल्लाह खान कुछ समय तक अपनी स्वतंत्र सत्ता के स्वप्न भी देखते रहेI वे भारत-विरोधीगतिविधिओं में संलग्न रहे I लेकिन, अन्ततः वे और अन्य सभी, जिनके सम्बन्ध में उल्लेख किया है, वल्लभभाईकी देश की एकता के निर्माण के प्रति कटिबद्धता के समक्ष नतमस्तक हो गएI

भारत की एकता व अखण्डता को जो निरन्तर चुनौती दे रहे थे, अपनी पृथकतावादी गतिविधिओं से भारतीयसंघ के लिए नासूर बन रहे थे, जैसे कि हैदराबाद के नीजाम उस्मान अली खान, सरदार पटेल ने ऐसे शासकों केविरुद्ध सुदृढ़तम कदम उठाएI उनके विरुद्ध कार्यवाहियाँ कींI हैदराबाद में मेजर जनरल जे0 एन0 चौधरी केनेतृत्व में भारत की ओर से हुई सैन्य कार्यवाही और राज्य के भारतीय संघ में विलय के सम्बन्ध में हम सभीभली-भाँति जानते हैंI अन्ततः हैदराबाद राज्य के भारतीय संघ में विलय से जुड़ा घटनाक्रम बहुत विस्तृत है, उसेपूर्णतः जानने-समझने के लिए कम-से-कम एक बहुत बड़े आलेख की आवश्यकता होगी, इसलिए हैदराबाद केविषय को यहीं छोड़कर अब सरदार पटेल की विशुद्धतः देशहित को समर्पित कार्यनीति –कुशल रणनीति कोकेन्द्र में रखते हुए जूनागढ़ की बात करते हैंI

जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत खान तृतीय ने अपने राज्य का विलय अपनी जनता की इच्छा के विरुद्धपाकिस्तान के साथ कर दिया थाI जूनागढ़ (जिसका भू-क्षेत्र 3,337 वर्गमील और कुल जनसँख्या लगभग सातलाख थी) की, पाकिस्तान के साथ कही भी भू-सीमा नहीं मिलती थीI यही नहीं, जूनागढ़ ने छ: और निकटवर्तीदेशी राज्यों –गोंडल, बावरियावाढ़, मानवदार, मांगरोल, वेतना और सरदारगढ़ के भी भारतीय संघ में विलय केमार्ग को अवरुद्ध कियाI बावरियावाढ़ और मांगरोल पर अपने आधिपत्य को प्रकट कियाI इन दोनों राज्यों परआक्रमण कर, इस प्रकार इनकी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए, पाकिस्तान के साथ अपने विलय कीस्थिति में इन्हें भी जोड़ाI जूनागढ़ के शासक ने इस प्रकार, जैसे सम्पूर्ण काठियावाड़ क्षेत्र के भारतीय संघ केसाथ विलय के मार्ग को अवरोधित करने की कुचेष्टा कीI ऐसी स्थिति में, विशेषकर जन-इच्छा के विरुद्धमहाबत खान का, जूनागढ़ का पाकिस्तान के साथ विलय करने के बाद वहाँ उत्पन्न हुई परिस्थितिओं में, जन-रक्षा और क्षेत्र की स्थिरता के उद्देश्य से सरदार वल्लभभाई पटेल बहुत ही समझ-बूझ और श्रेष्ठ रणनीति केसाथ आगे बढे़I

सर्वप्रथम, उन्होंने, अति सुदृढ़ कदम के रूप में, जूनागढ़ के निकटवर्ती देशी राज्यों की, विशेषकर जिनका हमनेउल्लेख किया है तथा जिनमें से कुछ भारतीय संघ में अपना विलय कर चुके थे, और शेष सम्मिलन कोलालायित थे, कड़ी सुरक्षा के प्रबन्ध कराएI सुरक्षा प्रबन्ध इतने प्रभावकारी और मजबूत थे कि उनसे उन बाह्यगुण्डा तत्त्वों पर, जो नवाब की ओर से जनता पर उनके जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय के एक पक्षीय निर्णयको बलपूर्वक, जनता पर अत्याचार करते हुए थोपने के लिए पाकिस्तान की सहायता से घुसाए जा रहे थे, पूर्णतः रोक लग गईI इससे वहाँ की जनता का मनोबल बहुत ऊँचा हो गयाI जनता में उच्च मनोबल को बनाएरखने में भी सरदार पटेल की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमिका थी, जो वास्तव में वल्लभभाई की रणनीति का द्वितीयअतिप्रभावकारी कदम थाI जूनागढ़ का आमजन सांवलदास गाँधी के नेतृत्व में नवाब के निर्णय के विरुद्धविद्रोह पर उतारू हो गयाI विद्रोह इतना भारी था कि नवाब जनाक्रोश सह पाने की स्थिति में नहीं थाI बलशालीभारतीय सैन्य दस्तों की सुरक्षा घेराबंदी के कारण नवाब को पाकिस्तान की ओर से किसी प्रकार की कोईसहायता मिलने की सम्भावना नहीं थीI नवाब के जनता के समक्ष आत्मसमर्पण की स्थिति बन गईI

अतः भयभीत महाबत खान 25 अक्टूबर, 1947 ईसवीं को अपने परिवार के सदस्यों के साथ पाकिस्तान भागगयाI रणनीति के अगले कदम के रूप में भारतीय सशस्त्र बलों ने 1 नवम्वर, 1947 ईसवीं को बावरियावाढ़ औरमांगरोल का प्रशासन अपने हाथों में लियाI तीव्रतापूर्वक परिवर्तित होती परिस्थितिओं में, अपनी कुचेष्टा मेंविफल और विवश नवाब के प्रधानमंत्री –दीवान शाहनवाज भुट्टो ने भी, जिसकी स्वयं नवाब को उकसाकरजूनागढ़ राज्य का पाकिस्तान में विलय कराने में प्रमुख भूमिका थी, 7 नवम्बर, 1947 ईसवीं को पाकिस्तानभागते हुए, भारत सरकार से राज्य के शासन को अपने हाथ में लेने का अनुरोध कियाI उन्होंने सरदार पटेल कोएक टेलीग्राम भी भेजा और उसमें सरदार पटेल के जूनागढ़ के भारतीय संघ में विलय के परामर्श को स्वीकारकियाI

9 नवम्बर, 1947 ईसवीं को भारत सरकार ने जूनागढ़ राज्य का शासन अपने हाथों में ले लियाI 24 फरवरी , 1948 ईसवीं को जूनागढ़ में जनमतसंग्रह कराया गयाI वहाँ के लोगों के एकपक्षीय निर्णय, निन्यानवे प्रतिशतसे भी अधिक लोगों के समर्थन –सम्पुष्टि से, जूनागढ़ भारतीय संघ का भाग बनाI इससे पूरे काठियावाड़ कीउन्नति एवं सुरक्षा की सुनिश्चितता हो सकी, जो सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर भारत की सुरक्षा, सुदृढ़ता और विकास केलिए अतिमहत्त्वपूर्ण थीI यह सम्पूर्ण देश की एकता, अखण्डता, सुरक्षा और समृद्धि के लिए एक बड़ी उपलब्धिभी थीI सरदार पटेल ने इस अभूतपूर्व उपलब्धि को प्राप्त करने में निर्णायक भूमिका का निर्वहन किया औरस्वयं को महानतम –अतिश्रेष्ठ भारतीय सिद्ध कियाI

जम्मू-कश्मीर राज्य का जितना भाग आज भारत के नियंत्रण में है, वह सरदार वल्लभभाई पटेल की राष्ट्रीयएकता, अखण्डता और सुदृढ़ता के लिए दृढ़निश्चयता के कारण ही हैI वर्षों तक जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघमें विलय के लिए हुए प्रयासों –सरदार पटेल की राज्य की भारत के साथ सम्बद्धता हेतु नीति, रणनीति औरइसके विलय के लिए उठाए जाने वाले कदमों से जुड़ा भी एक विस्तृत ब्यौरा हैI सम्बद्ध घटनाक्रम से अनेक नएऔर तथ्यात्मक आलेख –ग्रन्थ तैयार हो सकते हैंI इसलिए, किसी विस्तार में न जाते हुए यहाँ अतिसंक्षेप में, तोभी, मैं यह कहूँगा कि देश की जनता द्वारा प्रचण्ड बहुमत से सरदार पटेल के पक्ष में निर्णय दिए जाने के बादभी, स्वतंत्र भारत की केन्द्रीय सत्ता के सर्वोच्च स्थान, प्रधानमंत्री पद पर आसीन न होते हुए भी, जिस प्रकार, अनेक अवरोधों, भारी आन्तरिक एवं बाह्य बाधाओं का वीरतापूर्वक सामना करते हुए, वल्लभभाई ने पुरुषार्थकिया, वह कोई समर्पित महानतम भारतीय ही, जो भारतीय संस्कृति का सच्चा अनुयायी और सम्पोषक हो, कर सकता थाI

सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के केन्द्रीय शासन में, भारत सरकार में उपप्रधानमंत्री थेI वे दूसरे स्थान पर थेI सरदार वल्लभभाई पटेल सरकार-प्रमुख होते, अपने विवेक, कौशल और अनुभव के बल पर एवं अपनीकार्यशैली के अनुसार समय पर आवश्यक और त्वरित निर्णय लेने एवं उनके क्रियान्वयन हेतु स्वतंत्र रहे होते, तोजूनागढ़ और हैदराबाद जैसे राज्यों के भारतीय संघ में विलय में अनावश्यक देर नहीं हुई होतीI देश जन-धन कीहानि से बचताI जम्मू-कश्मीर की स्थिति उतनी पेंचीदा नहीं होती, जितनी वह आजतक भी है, और वह राष्ट्रीयएकता एवं अखण्डता को चुनौती देती हैI इसीलिए, अनेकानेक द्वारा यह कहा जाता है कि यदि सरदार पटेलदेश के प्रथम प्रधानमंत्री रहे होते, तो निश्चित रूप में देश की स्थिति आज कुछ और ही होतीI

सरदार पटेल ने, तो भी, अपने पद और स्थान की स्थिति से बेपरवाह रहते हुए भारतीयता की मूल भावना केअनुरूप अभूतपूर्व कार्य कियाI भारतीय संस्कृति की मूल विशिष्टताओं से विकसित भारतीयता की अपेक्षा केअनुसार चिरस्मरणीय कार्य कियाI भारतीयता की अपेक्षा क्या है? 

इसकी अपेक्षा भारतीय संस्कृति की सर्वकल्याणकारी –चिरन्तन, एवं मानवतावाद को समर्पित विशिष्टताओं –सहयोग, सामंजस्य तथा सौहार्द के साथ ही विकासोन्मुखता को केन्द्र में रखकर विभिन्नताओं में एकतास्थापित करते हुए समर्पित होकर वृहद् कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना हैI

रक्त की एक बूँद भी गिराए बिना अधिकांश देशी राज्यों का उनके शासकों को समझा-बुझाकर, उन्हें विश्वासमें लेकर तथा उनकी सहमति से, जबकि एक-आध का, कोई अन्य विकल्प शेष न रहने पर, न्यूनतम हिंसा केबल पर और स्पष्ट रणनीति द्वारा भारतीय संघ में विलय अभूतपूर्व थाI सौहार्द के बल पर, हम पुनः डंके कीचोट पर कह सकते हैं, एकीकरण का ऐसा कार्य संसारभर में और कहीं नहीं हुआI उन राज्यों के शासकों केसाथ भी, जो राष्ट्रीय एकता के महायज्ञ को निरन्तर बाधित कर रहे थे, अथवा इसे विखण्डित करने पर उतारूथे, सरदार पटेल की दृढ़निश्चयता से, उनके राज्यों के भारतीय संघ में विलय के उपरान्त भी, जिस प्रकार कासद्भावनापूर्ण व्यवहार उनके द्वारा किया गया, उससे सम्पूर्ण स्थिति स्वतः ही स्पष्ट हो जाती हैI हमारी युवापीढ़ी को उसे विस्तार से जानना चाहिएI सरदार पटेल ने सभी राजाओं-महाराजाओं के साथ आदरपूर्ण व्यवहारकियाI उन्हें, उनकी सत्ताओं के हस्तान्तरण के बाद भी समुचित आदर दियाI उन्हें योग्य स्थान व सुविधाएँ दींI यही भारतीयता हैI भारतीय संस्कृति का सर्वप्रमुख सन्देश हैI राजाओं-महाराजाओं, नवाबों द्वारा अपनी सत्ताएँभारतीय संघ को सौपनें के बाद भी, विशेष रूप से भोपाल के नवाब, राजपुताना क्षेत्र के राज्यों के शासकों एवंअनेकानेक अन्य राजाओं-महाराजाओं द्वारा सरदार पटेल को अपना परमहितैषी, सच्चा मित्र, रक्षक औरसंरक्षक स्वीकार किया गयाI यह था राष्ट्र की अभूतपूर्व राजनीतिक-भौगोलिक एकता के निर्माता सरदार पटेलका व्यक्तित्वI निस्सन्देह, महानतम सरदार के अतिश्रेष्ठ भारतीय के रूप में चरित्र का भली-भाँति अवलोकनराष्ट्रीय एकता के निर्माण में उनके सफल व भगीरथ कार्य के विश्लेषण से हो सकता हैI

इसे भी पढ़ें : सरदार पटेल: जिन्होंने राजाओं को ख़त्म किए बिना ख़त्म कर दिए रजवाड़े

50780902https://www.bbc.com/hindi/india-50780902

देश की एकता और अखण्डता के बल पर हिन्दुस्तान की समृद्धि और विश्वगुरु के रूप इसके स्थापित होने केलिए, राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पणप्रतिबद्धता और दृढ़निश्चयता केन्द्रित उनके विचारों कीजो स्वयं उनकेराष्ट्रीय एकता निर्माण की अवधि में उनके कार्यों का आधार थे, प्रासंगिकता उनके अपने समय भी अधिक होगई है। उनके विचारों, तदनुसार कार्यों के बल पर ही युवा-वर्ग को भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करनाहै।

लेखक ड़ा रवींद्र कुमार : सरदार पटेल और भारत की एकता
Dr Ravindra Kumar

डॉरवीन्द्र कुमार

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉरवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठविश्वविद्यलयमेरठ (उत्तर प्रदेशके पूर्व कुलपति हैं I

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