वायु प्रदूषण वाले इलाक़ों में कोरोना से मृत्यु दर ज़्यादा

दिनेश कुमार गर्ग

जहां जितना ज़्यादा वायु प्रदूषण ज़्यादा  वहाँ कोरोना अथवा कोविड 19 से मृत्यु दर उतनी ज़्यादा। कोरोना वायरस यानी कोविड 19 से पूरा विश्व संक्रमित होने और उससे हजारों की संख्या में मौतों से घबराई दुनिया में इसके विविध पक्षों यथा कारण, निवारण, बचाव, उपचार आदि पर वैज्ञानिकों का ध्यान जाने लगा है । 

फिलहाल जब तक कोविड 19 का औषधीय तोड़ नहीं निकल कर आ रहा है , चिकित्सा वैज्ञानिकों का ध्यान इस बात पर है कि वातावरण के प्रदूषण के कारण कहीं कोरोना मृत्यु दर बढ़ तो नहीं रही है ? अमरीका यानी यूनाइटेड स्टेट्स में चिकित्सा वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर गया है और शोध में विश्व स्तर पर अग्रणी हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस पर काम किया है। वहां के स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ के शोध वैज्ञानिक टी एच चान ने कोरोना प्रभावित अमरीका के विभिन्न राज्यों की 3080 काउंटीज के वायु गुणता और कोरोनाजन्य मौतों का विश्लेषण कर पता लगाया कि वायु में सूक्ष्म खतरनाक कणिकाओं  PM 2.5  की जितनी ज्यादा उपस्थिति होगी उतनी ही ज्यादा कोरोना मृत्यु दर होगी।   

दिनेश कुमार गर्ग

दर असल पब्लिक हेल्थ अफसरों को भी लोकैलिटी की प्रदूषित हवा के कारण वायरस जन्य कोविड 19 से संक्रमित होने और असमय काल कवलित होने का अंदेशा हो रहा था। इस परिप्रेक्ष्य में हार्वर्ड विश्व विद्यालय का यह विश्लेषण अमरीका का पहला राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन है जो प्रदूषण कारक कणों के मध्य दीर्घावधि निवास और कोविड 19 व अन्य बीमारियो से ग्रस्त होने के अन्तर्संबंध का  सांख्यकीय आधार  प्रस्तुत कर रहा है । यानी यदि आप काफी समय से प्रदूषित माहौल में रह रहे हैं तो आप पर कोविड 19 का खतरा बढ़-चढ़ कर है।जितना कम प्रदूषण उतना ही कम खतरा। हार्वर्ड के इस शोध का पेपर न्यू जर्नल आफ मेडिसिन में प्रकाशन हेतु प्रेषित किया जा चुका है।

इस शोध पर अमेरिकन लंग एसोसियेशन के प्रवक्ता व कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय सान फ्रान्सिस्को के प्रोफेसर मेडिसिन डाॅ जाॅन आर बाल्मीज ने कहा कि इसके तथ्य उन अस्पतालों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो उच्च प्रदूषण स्तर में रहने वालेअश्वेत समुदायों के आस-पास स्थापित हैं।

इसी परिप्रेक्ष्य में भारत के संबंध में ” Choked : Life and Breath in the Age of Air Pollution” की लेखिका पत्रकार बेत गार्डिनर ने भारत जैसे अत्यंत वायु प्रदूषित देशों में इस कारण कोरोना संक्रमण से संभावित परिणाम पर चिन्ता व्यक्त की है।

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वायु को प्रदूषित करने वाले कण या पार्टिकुलेट मैटर PH 2.5 आते कहां से हैं ? यह सब हानिकरक कण हवा में हमारी मोटर गाडि़यों के धुए से, रिफाइनरीज, पावर प्लाण्ट्स , सिगरेट के धुएं आदि से पहुंचते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन सूक्ष्म कणों से भरी हवा में सांस लेते लेते फेफडो़ं की लाइनिंग क्षतिग्रस्त हो जाती है और सूजन हो जाती है, जिसके कारण श्वसन प्रणाली के प्रतिरक्षण की शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जो लोग प्रदूषण में जी रहे हैं वे लंग कैन्सर , हृदय रोग, स्ट्रोक के शिकार हो जाते हैं और यहा तक कि असमय मृत्यु हो जाती है।

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भारत में राजधानी दिल्ली समेत लगभग सभी प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण ख़तरनाक  स्थिति में रहता है, जो बीमारी का कारण बनता है। कारण स्पष्ट है प्रदूषण से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काम हो जाती है। तमाम चेतावनी के बावजूद यह प्रदूषण काम न होने से करोड़ों लोग पहले से बीमार चल रह थे। यही वे लोग हैं जो कोरोना का हमला झेल नहीं पाते। कोरोना के कारण यातायात एवं अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ काम होने से तात्कालिक रूप से प्रदूषण में गिरावट आयी है। शायद इससे नीति निर्धारकों को कोई भविष्य के लिए  सबक़ मिले।

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नोट : कृपया अपने इलाक़े में प्रदूषण  की  स्थिति पर पाँच सौ शब्दों तक लेख और दो तस्वीरें भेजें।

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