पठान संत रज्जब – रज्जब तै गज्जब किया
राजस्थान के आमेर राजा के सेनानायक का पुत्र रज्जब घोड़े पर बैठ ब्याहने जा रहा था की उसे ख्याल आया की संत दादू पास की पहाड़ी पर डेरा डाले हैं। वह दूल्हे के वेश में ही दादू के डेरे पहुँच गया। संत दादू ध्यान में थे और दूल्हा रज्जब ध्यानस्थ संत के सामने बैठा रहा। दादू का ध्यान टूटा चरणों में दूल्हा सर नवाये बैठा है। संत की दिव्यवाणी प्रस्फुटित हुई —
रज्जब तै गज्जब किया सिर में बांध्या मौर
आया था हरिभजन कूँ किया नरक की ठौर
संत दादू की वाणी रज्जब के आध्यात्मिक ह्रदय को भेद गई ,उसने अपना मौर गुरु के चरणों में रख दिया। संत दादू ने लाख रज्जब को समझाया की यह उम्र वैराग्य की नहीं है पर रज्जब ने अपना सिर गुरु के चरणों से नहीं उठाया। वह तो पीर होने के लिए आया था उसने तत्काल घोषणा की –जितनी जनमी जगत में जन रज्जब की मात –अर्थात इस संसार की सारी स्त्रियां रज्जब की माता के समान हैं।
संत दादू ने रज्जब के सिर पर मौर रख दिया और पीर बना दिया। सारी जिंदगी संत रज्जब दूल्हे के वेश में ही पीर रहे और सामाजिक समरसता को जीवंत करने के लिए उद्घोष किया —
हिन्दू तुरक उदय जल बूंदा कासौं कहिये ब्राह्मण सुदा
रज्जब समता ज्ञान विचारा पंचतत्व का सकल पसारा
संत रज्जब ने देश के हर संप्रदाय धर्म जाति के संतों की वाणी का संकलन -सर्वंगी में किया है जिसमे संस्कृत के वशिष्ठ ,व्यास ,भर्तृहरि ,शंकराचार्य की सूक्तियां हैं तो फारसी से मौलाना रूम ,मनसूर ,खुसरो अहमद और काजी महमूद जैसे साधकों के विचार हैं। इसमें एक ओर कबीर दादू रैदास ,नामदेव जैसे निर्गुण संतों की रचनाएँ हैं तो दूसरी ओर सूरदास ,तुलसीदास जैसे सगुण भक्तों की कवितायेँ संकलित हैं। इसमें नानक रामानंद जैसे युगपुरुषों की वाणी भी सुशोभित है। यह इस देश की चेतना को जागृत रखने वाला अदभुत ग्रन्थ है। दादू के अभिन्न शिष्य रज्जब की शिष्य मंडली में सभी जाति धर्मों के लोग थे। सर्वंगी में संत रज्जब ने– जन्मता जायते शूद्रः का वर्णन करते हुए कहा है –जन्मम जाइते सुद्रम सहंसकार द्विज उच्यते –वेदभ्यासं भवे विद्या ब्रह्म जानम ते ब्राह्मणं।
संत रज्जब विद्वान् और आध्यात्मिक महापुरुष थे जिनके रज्जब वाणी में पांच हजार से अधिक स्वरचित कवितायें संगृहीत हैं। दुर्भाग्य से रज्जब की वाणी का व्यापक प्रचार प्रसार नहीं हो सका।