कोना, सुच्चा सा
एक मैली सी चादर का सुच्चा सा कोना।
वो दुबका हुआ है,वो सिकुचा सा कोना।
जिस कोने में पहुची न धूल न मिटी।
फिर भी उस मिट्टी से महका सा कोना।
न जुड़ ही वो पाया न रहा अकेला ।
वो बिन किसी कोने का छोटा सा कोना।
जब धोइ थी चादर तोह बांधी थी गाँठि।
वो गाँठि भीतर समाया सा कोना।
जो सुखी वो चादर रहा गीला वो कोना।
बँधा है खींचा है, और रोका गया है
हवा में था उड़ना, पर थमा सा वो कोना।
देखो चादर को कैसा संभाले वो है ना।
बुना मखमल के चादर पे सूत का कोना
एक मैली सी चादर का सुच्चा सा कोना।