धान की बिक्री बनी है समस्या, किसान चिंतित
धान काट कर झाड़ लिया गया है, धान की राशि बंटवारे के लिए एकत्र है। 12 हिस्सा किसान का, 13वां धान काट कर झाड़ने वाले श्रमिक का। श्रमिक खुश और किसान चिन्तित।
चिन्ता इस बात की कि धान का बाजार बैठा हुआ है। 1100 से 1200 रुपये क्विंटल धान की कीमत लग रही है।
सरकारी क्रय केन्द्र पर ग्रेड बी यानी मोटे धान की कीमत 1868 रुपये क्विंटल का दाम है पर वहां धान लेते नहीं।
डीएम और अधिकारी शोर कर रहे हैं कि सब धान खरीदा जायेगा पर वैसा है नहीं। केवल ग्रेड ए का धान खरीदा जा रहा है।
और क्रय केन्द्र प्रभारी का तर्क है कि सरकार ने ही प्रति क्विंटल रिकवरी 67 प्रतिशत तय कर रखा है।
किसान जिस मोटे धान यानी हाइब्रिड धान को लेकर क्रय केन्द्र जाना चाहते हैं उसके बारे में क्रय केन्द्र प्रभारी का कहना है कि इसकी रिकवरी मात्र 62 प्रतिशत है।
किसान अगर रसूख रखता है यानी रूलिंग पार्टी का वोट मैनेजर है तो हाइब्रिड धान भी क्रय केन्द्र में बेच लेता है पर साधारण किसान केवल क्रय केन्द्र प्रभारी के रहमोकरम पर निर्भर है।
रहमोकरम का अर्थ यह है कि किसान 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत कटौती स्वीकार करे तो हाइब्रिड भी स्वीकृत हो जायेगा यानी रिकवरी 62 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो जाता है।
मतलब कि 20 से 25 प्रतिशत कटौती से रिकवरी बढ़ जाती है।
इसका मतलब कि किसान अपने 1868 रुपये में से 360 से 450 रुपये का धान केन्द्र प्रभारी को समर्पित कर दे तो हाइब्रिड धान को क्रय केन्द्र पर बेचने लायक मान लिया जाता है।
मेरी चिन्ता है कि लगभग 350 क्विंटल हाइब्रिड धान का उत्पादन हुआ है।
उनको पैकेट में भरने के लिए पहले 20 हजार रुपये के नये जूट बैग खरीदूं, फिर 30 रु प्रति बोरी खर्च कर क्रय केन्द्र पहुंचाऊं।
वहां 20 रुपये बोरी आफलोडिंग चार्ज दूं, फिर 20 से 25 प्रतिशत कटौती करवाऊं, तब बाजार की मार से बचकर सरकारी क्रय केन्द्र में सरकार की कृपा से तय मूल्य का औना-पौना पाऊं।
मैं बिना कटौती के क्रय केन्द्र पर बेच पाता तो 653800 रुपये मिलते। 20 प्रतिशत कटने पर 78000 रुपये लुट जायेंगे।
25 प्रतिशत काट लिया तो यह धनराशि 100000 रुपये तक पहुंच सकती है।
अभी मुझे डीजल, बीज, उर्वरक और पेस्टीसाइड की उधारी, जो लगभग साढे़ तीन लाख बैठेगी, अदा करनी है।
कृषि सहायक करिन्दा और ड्राइवर की षटवार्षिक वेतन 62000 रुपये व घरेलू खर्च के 150000 रुपये भी अदा करने हैं।
पराली न जलाने के आदेश का पालन करना है तो पराली संग्रहीत कराने और ट्रांसपोर्ट करने पर लगभग 1000 रुपये बीघे के हिसाब से 28000 रुपये का पर्यावरण रक्षण व्यय भी वहन करना होगा।
कुछ समझदार किसानों की राय जुदा है, आदेश न मानने की उनकी सलाह है, पर मैं तो सरकार का आदेश मानूंगा ही भले ही बाद मे जीरो बैलेन्स खेती रहे।
पर असली सवाल यह है कि एक सामान्य किसान के पास क्या बचा जो आगे की मैकेनाइजाड कृषि के महंगे उपकरण खरीदने की प्लानिंग करता।