अलविदा लेफ्टिनेंट
अनुवादक-पंकज प्रसून
सालवादोर के मशहूर कवि और उपन्यासकार मानलिओ आर्गेता का जन्म 24नवंबर 1935 को हुआ था। उन्होंने तीखी बातें कहने के लिये कविता और कथा साहित्य का सहारा लिया। उनकी रचनाओं पर सार्त्र का प्रभाव है।
स्पष्ट वक्ता होने के कारण उन्हें सत्तर के दशक में अपार कष्ट झेलने पड़े। कई बार गिरफ़्तार किया गया। देशनिकाला भी दिया गया। सन् 1980 में अधिकारियों ने उनके उपन्यास ऊन दीआ एन लाई बींदा का प्रकाशन रोक दिया और उसकी मुद्रित प्रतियां जब्त कर ली।वे कोस्ता रीटा में निर्वासित जीवन बिताने लगे।
नब्बे के दशक के प्रारंभ में गृह युद्ध समाप्त होने के बाद ही अपने वतन वापस लौट सके।उनका उपन्यास जिंदगी का एक दिन बहुत मशहूर है। जिसमें एक बूढ़ी औरत अपनी आपबीती सुनाती है और इसी क्रम में सैनिक शासन की दरिंदगी भी बताती चलती है।
एक अंधा
तेशाकुआंगोस की सड़क पर
पेड़ की छांव तले खड़ा था
जब वहां आ पहुंचे सिपाही
— बूढ़े, क्या तूने अजनबियों को
इधर घूमते देखा है?
जवाब था बूढ़े का
—इस उम्र में मुझे आंखें नहीं
कि अजनबियों या किसी को भी देख सकूं !
—हम ढूंढ़ रहे हैं सरकार के दुश्मनों को
वे सक्रिय हैं इस इलाक़े में
सिपाही बताते हैं अंधे बूढ़े को
और चले जाते हैं अपनी राह
—अलविदा लेफ्टिनेंट हुआन मार्ती नेस !!
लेफ्टिनेंट देखता है नीचे
अपने सीने पर लगी नंबर प्लेट को
पूछता है –अबे अंधे
तूने कैसे जान लिया मेरा नाम?
गंध पकड़ने की जबर्दस्त शक्ति है मुझमें साहेब !
फिर कोई कुछ नहीं बोला
लेफ्टिनेंट लौट गया
अपने सैनिकों के बीच
सड़क पर को गया
अंधा खड़ा चुपचाप
पेड़ की छांव तले करता आराम
तेशाकुआंगोस में अजनबी हैं लेफ्टिनेंट इस बात को नहीं जानता !!!