मोदी – वडनगर से निकल पूरे विश्व में छा जाने के 70 वर्ष

जन्मदिन पर विशेष - प्रधानमंत्री मोदी न केवल भारत बल्कि विश्व का कूटनीतिक-रणनीतिक परिदृश्य बदल सकते हैं? 

मोदी
दिनेश कुमार गर्ग, स्वतंत्र लेखक, उपनिदेशक सूचना (से.नि.)

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी आज 70 वर्ष के हो गये हैं। उनका जन्म बंबई प्रांत के मेहसाना जिले के वडनगर में 17 सितंबर 1950 को हुआ था।

वह गुजराती हैं पर उनके जन्म के समय गुजरात अस्तित्व में ही नहीं था।  गुजरात का जन्म मोदी जी के जन्म के लगभग 10 वर्ष बाद 1 मई 1960 को हुआ था। 

नरेन्द्र भाई जब 8 साल के थे तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये और 20 वर्ष के हुए तो संघ से जुड़ गये।

संघ में प्रचारक और विभिन्न पदों पर काम करते नरेन्द्र भाई ने राम जन्मभूमि आन्दोलन, लाल चौक कश्मीर में तिरंगा फहराने आदि के महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी कार्यों में एक बेहतरीन आयोजन कर्ता के रूप में पहचान बनाई।

गुजरात में कामकर बनायी पहचान

इसके बाद उन्हें वर्ष 2001 में  गुजरात का मुख्यमंत्री नामित किया गया।

उसी वर्ष 26 जनवरी को गुजरात के भुज में महाविनाशक भूकंप आया था और अक्टूबर में वह मुख्यमंत्री बने।

उन्होंने बडी़ तत्परता से दंगा पीडि़तों का पुनर्वास कराया।

अगले वर्ष 2002 में कारसेवकों को ट्रेन की बोगी में मुस्लिम चरमपंथियों द्वारा जला डालने की पृष्ठभूमि में भीषण साम्प्रदायिक  दंगे हुए।

इसके कारण मोदी जी को एक खास तबके के जरिये कोर्ट के झमेले और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक  बदनामी के बुरे दौर से गुजरना पडा़।

मोदी विरोधी दुष्प्रचार से प्रभावित अमरीका ने उनका वीजा रद कर दिया था । 

बहरहाल मोदी ने सभी चुनौतियों को जबरदस्त ढंग से संभाला और आतंकवादियों के विरुद्ध नो टालरेंस की नीति स्थापित की।

हालांकि दो आतंकवादियों कि पुलिस एनकाउंटर में मार गिराये जाने के बाद फिर बहुत झमेला हुआ।

लेकिन मोदी के अरावली पर्वत सरीखे दृढ़ रूख से षड़यंत्रों, दुष्प्रचारों की हवा निकल गयी।

देश के जाने माने उद्योगपति उस अवधि में गुजरात की दौड़ लगाने लगे थे जब केन्द्र में मोदी की सख्त मुखालफत कर रही यूपीए का शासन था।

मोदी के राजनैतिक प्रबंधन, सजग सक्रिय प्राशासनिक व्यवस्था और ईमानदारी भरे माहौल के सृजन से गुजरात की पूरे भारत से अलग एक “वाइब्रैन्ट” गुजरात की इमेज बनी।

पश्चिम बंगाल में जब ममता बनर्जी की फैलाई अशांति से टाटा को सिंगूर का अपने लाख रुपये वाली कार नैनो का कारखाना हटाना पडा़ तो उन्होंने उत्तराखण्ड या उत्तर प्रदेश या हरियाणा की बजाय गुजरात चुना।

नैनो के गुजरात जाने से और यूपीए की केन्द्र सरकार की अराजकता, अनिर्णय और भ्रष्टाचार से भरे शासन के दौर में एक उद्धारक नेता की खोज कर रही भारतीय जनता की निगाह में नरेन्द्र मोदी भविष्य के नेता के रूप में चढ़ गये।

विकल्प बने मोदी

सन् 2012  में जब सरकारी खजाने की लूट और भारी भ्रष्टाचार , आतंकवाद व अनिर्णय से ऊबी जनता को पहला लीडर अन्ना सजारे के रूप में मिला तो जनता उनके गांधीवादी आन्दोलन पर फिदा हो गयी।

पर अन्ना हजारे के साथ दिक्कत यह थी कि कांग्रेस को हटाने  का उनके पास कोई विकल्प नहीं था, देश के विकास का विजन नहीं था राष्ट्रपति कलाम द्वारा प्रस्तावित इण्डिया 2020 के लिए प्रोग्राम नहीं था।

कोई नहीं था, अकेले नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े दिख रहे थे, वह भी गुजरात में।

ऐसे में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि को किनारे करते हुए भाजपा ने नरेन्द्र मोदी पर दांव लगाया जिसका समाज के सभी वर्गों ने स्वागत किया।

लिबरल्स, मीडिय, मार्क्सिस्ट्स और कांग्रेसी उन्हें मुस्लिम विरोधी चित्रित  करते रहे तो भी मोदी को मुसलमानों और दलितों ने वोट किया।

इसकी वजह से सोनिया गांधी की ऐतिहासिक पराजय हुई, नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, समस्त जगत को विस्मित करते हुए।

सबका साथ सबका विकास मोदी का वह मंत्र रहा जिसने मोदी को न केवल भारत में सर्वस्वीकार्य बल्कि  पूरे विश्व में एक नये नेता की पहचान दी।

उन्हें अमरीका और यूरोप सहित पश्चिम एसिया के देशों में एक स्वीकार्यता और सम्मान दिलवाया।

लोग सोचते रहे कि ऐसा केवल भारत का ही कोई नेता बोल सकता है। विश्व के नेताओं को मोदी में एक नई रोशनी दिखी।

मोदी ने भारत को कैसे बदला? यह सवाल आज उनके जन्म दिन के अवसर पर पूछा जाना जरूरी है।

उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है।

उन्होंने जब पैरालिसिस की शिकार भारत सरकार की बागडोर संभाली थी अर्थव्यवस्था की प्रगति 7.41 प्रतिशत पर थी।

उनके सारथित्व में इसके बढ़ते बढ़ते 8.26 प्रतिशत तक की रेटिंग हुई।

मूडीज आदि का अनुमान था कि भारत 2020 तक 10 प्रतिशत की दर पा लेगा।

अर्थव्यवस्था को झटके

पर 2017 के बाद से विश्व की अर्थव्यवस्था में झटके आये, ब्रेक्सिट से यूरोपीय यूनियन लड़खडा़ने लगा, ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा हुआ।

लेकिन भारत को नुकसान हुआ क्योंकि भारत को रेमिटेन्स में कमी आयी, भारत से अमेरिका को प्रोफेशनल्स जाने लगभग बन्द हो गये, अमेरिका को निर्यात पर भी प्रतिकूल असर हुआ।

यद्यपि आर्थिक सुधारों, ईज आफ डूइंग बिजनेस में भारत के सुधार के बावजूद भारत की आन्तरिक कमजोरियों का असर पड़ा।

इससे अर्थव्यवस्था की गति में 2017 से कमी आनी शुरू हुई।

2020 की पहली तिमाही में वह नकारात्मक विकास दर 23.9 अंकित हुई है, जबकि अनुमान है कि वार्षिक ग्रोथ भी निगेटिव 9 प्रतिशत होगी।

हालांकि अर्थव्यवस्था में इतनी विकट गिरावट का दोष कोराना के कारण 24 मार्च 2020 से लागू सख्त लॉकडाऊन पर मढा़ जा रहा है।

यह सत्य के करीब है क्योंकि सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कोराना समय के लॉकडाऊन के कारण अर्थव्यवस्था नेगेटिव हुई है।

तो मोदी जी के  दूसरे कार्यकाल में अर्थव्यवस्था के गिरने जाने के अनुमान हैं जबकि मोदी ने एक बडा़ लक्ष्य 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का रखा है।

पर सरकार इससे पस्तहिम्मत, बिखरी या घबडा़ई नजर नहीं आती।

सरकार के सभी कामों में निर्णयात्मकता, समन्वय,निर्भीकता और भविष्यदृष्टि दिखती है।

सरकार का यही काम है कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी लुंज-पुंज न हो, सुधार के लिए प्रस्तुत रहे और विश्व अर्थव्यवस्था से मजबूती से आबद्ध रहे।

मोदी जी के नेतृत्व में अभी यही दिखता है।

आतंक पर लगाम, कश्मीर का पूर्ण एकीकरण

मनमोहन सिंह सरकार के समय की दो बुरी स्मृतियां अब लोग भूलने लगे हैं – आतंकवाद और आये दिन हो रही रेल दुर्घटनाएं। 

मोदी ने आतंकवाद को सख्ती से कुचला और पाकिस्तान में घुस कर उस पर प्रहार किया।

जम्मू कश्मीर के आतंकवाद पर मोदी सरकार का फौलाद बरस रहा है।

अब वहां नागरिक और सुरक्षाकर्मी नहीं बल्कि आतंकवादी ही मारे जाते हैं । 

सरकार से अपेक्षा होती है कि वह राजनैतिक लाभ-हानि से अधिक राष्टीय लाभ-हानि को विचारकर कदम बढा़ये।

मोदी सरकार इसमें भी सफल रही है।

जम्मू-कश्मीर का पुराना नासूर खत्म किया, राज्य का भारत से पूर्ण एकीकरण किया, धारा 370 और 35 ए को हटाकर कश्मीरी मुसलमानों के दिल में भारत के प्रति दुविधा समाप्त कर उन्हें अब भारत का ही नागरिक रहने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है इस मनःस्थिति में ला दिया।

यह राष्ट्रीय एकीकरण का बहुत बडा़ काम था जिसे इंदिरा जी जैसी लौह महिला भी न कर सकीं थीं।

अब वहां विशेष दर्जा खत्म होने से पाकिस्तान प्रेरित अलगाववादी भावनाओं का चोर दरवाजा बन्द हो गया।

सीएए कानून लाकर एक दूसरा महान कार्य मोदी जी ने किया जिससे पाकिस्तान से कश्मीर आये हजारों दलित हिन्दुओं (मेहतरों) को न्याय और सम्मान मिला जिसके लिए पिछले 72 साल से वे तरस रहे थे।

लाखों अन्य हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों,बौद्धों, जैनियों  को भी उससे नागरिकता मिल सकी।

हालांकि कतिपय राजनीतिक दलों, ग्रुपों ने अफवाह फैलाकर मुसलमानों को सीएए के खिलाफ यह कहकर भड़का दिया कि यह मुस्लिम विरोधी और नागरिकता छीनने का कानून है जिससे गत फरवरी में सीएए विरोधी भयंकर दंगे भी हुए।

आम जनता के लिए जनधन, उज्ज्वला, आवास और स्वच्छता मिशन

अपने प्रथम कार्यकाल में मोदी जी ने सामान्य बैंकिंग सुविधा विहीन करोड़ों भारतीयों को जन-धन योजना के माध्यम से बैंकिंग से जोडा़ और उन्ही डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर योजना से लाभान्वित होने का अवसर दिया।

गृहणियों के लिए उज्ज्वला योजना भी उल्लेखनीय है जिसने गांव-गिरांव तक स्मोकलेस कुकिंग का परमसुख भारतीय महिलाओं को मिला।

तीसरा बडा़ काम उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम गरीबों झोपडी़ वालों के लिए किया।

चौथा ऐतिहासिक काम स्वच्छ भारत मिशन को लाकर किया।

वास्ट ओपेन लैट्रीन के रूप में प्रसिद्ध भारत में घर-घर शौचालयों का निर्माण, सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता का माहौल बनाने के उनके प्रयासों ने उन्हें जन सामान्य का चहेता बना दिया।

भारतीय जनजीवन के हर क्षेत्र में मोदी जी की छाप रही जिससे भारत की सजग जनता ने उन्हें भारत की सेवा का दूसरा अवसर दिया।

इसका महत्व इस दृष्टि से बहुत अधिक है कि यह सौभाग्य अटल जी को भी नहीं मिला और वे सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले गठबन्धन से पराजित हो गये थे।

डिप्लोमेसी और विदेशनीति ऐसा एरिया है जिसमें भारत को एज (भारत की स्वयं की कमजोर प्रस्तुति) से उबार कर एडवांटेज भारत करने का गौरव शायद नेहरू जी को भी नहीं मिला।

पाक, चीन के कसबल ढीले किये

हालांकि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के अभिनव कूटनीति के  वे प्रणेता रहे। 

कश्मीर में बुरी तरह फंसे, तिब्बत में अदूदर्शी साबित हुए, चीन से मैत्री के बीच दलाईलामा का स्वागत कर दूध में नींबू डालने का काम कर बैठे।

सेनाओं को 303 राइफल वाली लोकल पुलिस की हैसियत में ला बैठे और अक्साई चिन से हाथ धो बैठे।

उनकी विफलताएं उनके डिप्लोमैटिक रोमांस की प्रतीक बन गयीं।

पर मोदी ने ऐसा नहीं होने दिया।

पाकिस्तान के कसबल ढीले कर दिये, इस्लामिक जगत से उसको पांत से बाहर करा दिया।

अब ओआईसी पाकिस्तान का अखाडा़ नहीं रहा।

चीन के खिलाफ उन सभी देशों को पंक्तिबद्ध कर दिया जो चीन को दादा मानने से हिचकते रहे।

स्ट्रिंग आफ पर्ल्स घेरेबन्दी की काट तैयार कर दी तो इतिहास में पहली बार साउथ चाइना सी में विमानवाहक युद्ध पोत तैनात हुए।

गलवान, पैन्गोन्ग सी की चीनी रणनीति में चीन को ही फंसाकर अब उस कलंक को धो दिया जिसके कारण भारत को विश्व में सॉफ्ट स्टेट कहा जाता रहा।

कोविड 19 के बाद चीन को पूरी दुनिया में खलनायक के रूप में देखा जा रहा था, सो मोदी जी ने खलनायक को बांधने के इच्छुक सभी देशों को एक मंच दे दिया –क्वाड – आस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका का हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन रोधी सैन्य गुट।

मोदी जी के कामों की बहुत लम्बी फेहरिस्त है, जिसका जिक्र कहीं अन्य जगह उपयुक्त होगा।

यहां तो यह बताना भर है कि भारत को जिस चमत्कारी लीडर और वक्ता व विजनरी की तलाश नेहरू के बाद से रही वह संभवतः मोदी के रूप में मिल गया होगा।

आशा करते हैं कि मोदी जी अपने शेष कार्यकाल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर उसे 5 ट्रिलियन करने का गौरव हासिल करने से नहीं चूकेंगे।

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ये लेखक के निजी विचार हैं. 

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