जबतक जीवन, तब तक काम क्रोध का उद्भव अवश्यंभावी
आज का वेद चिंतन विचार
चतुरश्चिद् ददमानात् बिभीयादा निधातो:
न दुरुक्ताय स्पृहयेत् (1.9.6)चज
चारों को हतवीर्य करनेवाला जो कोई एक है, देह गिरने तक उससे डरते रहें। दूषित वाणी की इच्छा न करें।
चारों को हतवीर्य करनेवाला’ है काम। काम में क्रोध आदि विकारों का समावेश हो जाता है।
देह, इंद्रियां मन और बुद्धि, इन चारों पर काम का शासन चलता है।
शरीर का निग्रह करने जायें, तो काम इंद्रियों का आश्रय लेता है। इंद्रियों का निग्रह करें, तो मन में छिप जाता है।
मन को वश में किया तो बुद्धि का सहारा लेने जाता है।
बुद्धि को वश करने के लिए बुद्धि से परे रही हुई शक्ति का यानी आत्मज्ञान का या ईश्वर भक्ति का आश्रय लेना होता है।
यह सारा दिन-रात का युद्ध है।
गीता ने आदेश दिया है, जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् (गी. 3.43) (इस दुर्जय वैरी काम को मार डालो)।
आ धातोः यानी शरीर के गिरने तक, मरने तक। बिभीयात् – डरते रहें।
डरते रहने का अर्थ यह नहीं कि सदा भयभीत रहें, बल्कि यह कि सावधान, जागृत और प्रयत्नशील रहें।
इस मंत्र में मरण की सीमा किसलिए बतायी गयी?
इसलिए कि जबतक जीवन है, तब तक काम-क्रोध का उद्भव अवश्यंभावी है, क्योंकि उसके अनंत निमित्त बनते रहते हैं।
इसलिए मरने तक विश्वास से न रहें। यह कहने के लिए मृत्यु की सीमा बांधी गयी है।
‘दूषित वाणी की इच्छा न करें’ – इंद्रियों के समुचित उपयोग से देह को वश में किया जा सकता है।
मनोनिग्रह से इंद्रियां काबू में आती हैं। बुद्धि को स्थिर कर मनोलय साधा जा सकता है।
बुद्धिगत सूक्ष्म काम खोजने के लिए बुद्धि से परे परमेश्वर-शक्ति उपयोगी होती है।
काम-विजय की यह प्रक्रिया सर्वमान्य है। परंतु इस संबंध में वेद एक विशेष सूचना दे रहा है कि वाणी में विकार न आने दें।
बात सादी-सी है, पर है बड़े ही महत्त्व की। चिंतन और आचरण, इन दोनों के बीच वाणी खड़ी है।
नाम-संकीर्तन, सत्य वचन, स्वाध्याय आदि द्वारा वाणी को शुद्ध किया जा सका, तो चिंतन और आचरण, दोनों का भी नियमन करना आसान होता है।
वाणी में संसार को न भरें उसे हरिस्मरण के लिए समर्पित करें, भक्ति मार्ग की इस युक्ति का आदेश वेद ने दिया है।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर
रामनामरूपी मणि-दीप वाणी की देहरी पर रख दो। तुलसीदास कहते हैं कि अंदर और बाहर, दोनों जगह प्रकाश चाहते हो, तो यह युक्ति साध लो।