शिक्षक दिवस : राधाकृष्णन ने दिया शिक्षा का अर्थ
डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज। भारत के महान शिक्षक, दार्शनिक, विचारक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन को शिक्षक दिवस के अवसर पर कोटि कोटि नमन।
प्रो. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन की तर्क और विज्ञान के आधार पर व्याख्या की और उसे पूरी दुनिया तक पहुँचाया।
आजादी के बाद विश्विद्यालयों के सुधार के लिए और देश में उच्च शिक्षा को गति देने के लिए डा राधाकृष्णन की अध्यक्षता में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया गया।
इस आयोग ने अपनी संस्तुति में आजाद भारत के लिए विश्वविद्यालय एवं प्रौद्योगिकी तथा प्रबंधन के संस्थानों के अस्तित्व को मानववाद के लिए सहिष्णुता एवं विवेक के लिए विचारगत साहस और तत्व की खोज के लिए आवश्यक समझा।
आयोग का मत था की राष्ट्र और जनता का श्रेय इसी में है की विश्वविद्यालय अपने दायित्व का समुचित निर्वाह करते रहें।
इससे मानव जाति उच्चतर उद्देश्यों के लिए कदम बढ़ा सकेगी।
राधाकृष्णन की संस्तुति पर बने थे आईआईटी, आईआईएम, यूजीसी
इस आयोग की संस्तुतियों के आधार पर ही प्रथम आईआईटी की स्थापना 1951 में खड़गपुर में की गई।
दूसरा आईआईटी मुंबई में 1958 में स्थापित हुआ। तीसरा और चौथा आईआईटी 1959 में कानपुर और चेन्नई में स्थापित हुआ।
1963 में पांचवां आईआईटी दिल्ली में स्थापित हुआ।
राधकृष्णन आयोग सन्तुतियों के फलस्वरूप 1956 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अस्तित्व में आया। इसके अलावा शैक्षिक प्रबंधन के लिए 1961 में एनसीआरटी का गठन किया गया।
भारतीय प्रबंधन संसथान अहमदाबाद और कोलकाता में 1961 में तथा बेंगलोर में 1963 में स्थापित किये गए।
इस आयोग ने अपनी संस्तुति में विश्वभारती, कुरुकुल कांगड़ी, अरविन्दाश्रम, जामिया मिलिया, विद्याभवन तथा वनस्थली विद्यापीठ को आधुनिक भारतीय शिक्षा के प्रयोग के रूप में उच्च शिक्षा केंद्रों के रूप विकसित करने पर बल दिया था।
त्रिवर्षीय स्नातक भी राधाकृष्णन की देन
राधाकृष्णन आयोग की एक महत्वपूर्ण संस्तुति त्रिवर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम संचालित करने की थी।
बिडम्बना यह हुई कि इस संस्तुति का क्रियान्वयन लगभग तीस साल बाद विश्वविद्यालयों द्वारा संभव हो सका।
इस महान शिक्षाविद की अपेक्षा थी की आजाद भारत में विश्वविद्यालयों का स्वरूप कुछ ऐसा विकसित होगा जो सृष्टि के और दैहिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक सभी धरातलों पर मनुष्य के बोध को गहराई देगा।
इसके अलावा मानव जाति की सेवा लिए उसका उपयोग करेगा, जहाँ विचारों को आश्रय मिलेगा।
यहाँ छात्र और शिक्षक आचरण और निष्ठां के ऊंचाई की और अग्रसर होंगे। सत्य और उत्कर्ष के विभिन्न रूपों की खोज में जुटे रहेंगे। यही क्षा का अर्थ होगा।