समानता, न्याय और शांति को समर्पित शहीदों की याद में एक शाम
लखनऊ, 23 मार्च।
यह गीत-संगीत की शाम तो थी लेकिन पारम्परिक गीत-संगीत से हटकर। गीतों से, अपनी धुनों, अपने शब्दों से रोमांचित करने वाली शाम। सांप्रदायिकता और हर दिन गहराते मौजूदा सांस्कृतिक संकट के दौर में यह यादगार शाम थी। अवसर था भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत को याद करने का। आज से महज़ 91 बरस पहले आजादी की लड़ाई के इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई थी। इप्टा के कार्यालय परिसर 22 कैसरबाग में आयोजित यह शाम कई कारणों से यादगार बन गई।
ठीक 7 बजकर 33 मिनट पर जब अचानक मंच पर खामोशी छा गई औऱ दर्शक दीर्घा के पीछे अर्धचन्द्राकार आकार में मशालें रोशन हुईं तो वहां मौजूद लोग ही नहीं, आसपास का माहौल भी रोमांचित हो उठा। यह अद्भुत असर छोड़ने वाला क्षण था।
लिटिल इप्टा के युवा होते साथियों ने अपने गीतों से समा बांधा तो कुलदीप और उनके साथियों ने चर्चित कवि देवी प्रसाद मिश्र की बहु चर्चित कविता ‘मुसलमान’ का पाठ कर पूरे परिदृश्य को सामने खड़ा कर दिया।
‘नफस-नफस, कदम-कदम, बस एक फिक्र दम ब दम’ जैसा क्रांतिकारी गीत इस अवसर की जरूरत भी थी और मांग भी। सो दर्शक दीर्घा में बैठे युवाओं ने इसे सस्वर गाकर माहौल रच दिया।
इप्टा के साथियों ने “फंदा बहुत हसीन है, सपनो का मायाजाल…” शीर्षक से काव्य-नाटक प्रस्तुत कर मौजूदा दौर की भयावहता को सामने रख दिया।
राष्ट्रीय इप्टा के महासचिव राकेश ने आगे के कार्यकर्मो की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए अगले माह शुरू होने वाली सांस्कृतिक यात्रा “ढाई आखर प्रेम का” की रूपरेखा सामने रखी। कई माह चलने वाली यह सांस्कृतिक यात्रा रायपुर से शुरू होकर यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड सहित कई राज्यों से गुजरेगी। कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र यादव ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत को याद करते हुए उनके संदेशों की मौजदा प्रासंगिकता रेखांकित की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में सांस्कृतिककर्मियों के साथ बच्चों, युवाओं और महिलाओं की बड़ी भागीदारी अवसर को महत्व प्रदान करने वाली रही। कार्यक्रम का संचालन दीपक कबीर ने किया।