श्रेष्ठ पत्रकारिता के चार सिद्धांत
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष
गौरव अवस्थी , रायबरेली
प्रथम हिंदी दैनिक उदंत मार्तंड के उद्भव के साथ आज के दिन सबसे पहले आते हैं पंडित युगल किशोर शुक्ल. इसके बाद नाम जेहन में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का ही उभरता है. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 9 मई 1864 को रायबरेली के गंगा किनारे बसे ग्राम दौलतपुर में हुआ था. 21 दिसंबर 1938 को उन्होंने रायबरेली के बैलीगंज मोहल्ले में अंतिम सांस ली थी.
रेलवे की नौकरी छोड़कर अपने समय की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती का संपादन संभालने वाले आचार्य द्विवेदी ने अपने जीवन के चार सिद्धांत तय किए थे.
1. वक्त की पाबंदी
2. ईमानदारी से कार्य करना
3. रिश्वत न लेना
4. ज्ञान वृद्धि के लिए सतत प्रयत्नशील रहना
आचार्य द्विवेदी ने यह चार सिद्धांत तय तो अपने जीवन के लिए किए थे लेकिन समग्रता में देखे तो यह हर एक जीवन के लिए उपयोगी सिद्धांत है, पत्रकारों के लिए खासतौर पर. अगर कोई पत्रकार इन सिद्धांतों को अपना ले तो उसे “श्रेष्ठ” बनने में देर न लगेगी.
आचार्य द्विवेदी एक ऐसे संपादक-पत्रकार हुए जिन्होंने भाषा सुधारी और साहित्य को समृद्ध करने वाले लेखक-कवि भी प्रदान किए. हिंदी पत्रकारिता में ऐसा कोई दूसरा समृद्ध इतिहास प्राप्त होना मुश्किल दिखता है. मुंशी प्रेमचंद जी ने ऐसे ही नहीं कहा था-” आज हम जो कुछ भी हैं, उन्हीं आचार्य द्विवेदी) बनाए हुए हैं. उन्होंने हमारे लिए पथ भी बनाया और पथ प्रदर्शक का काम भी किया”
यह आचार्य द्विवेदी की अध्ययनशीलता ही थी कि उन्होंने कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी संपादित की और उसका आकर्षक शीर्षक “पंच परमेश्वर” पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया. मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी इस कहानी का शीर्षक “पंचों में ईश्वर” लिख कर आचार्य द्विवेदी के पास भेजा था. मुंशी जी की इस कहानी के संपादित “अंश” आज भी काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पास सुरक्षित है.
आचार्य द्विवेदी ने अपनी संपादित समस्त सामग्री जीवन के अंतिम दिनों में काशी नागरी प्रचारिणी सभा को ही विरासत के रूप में सौंप दी थी.
हिंदी साहित्य के “सूर्य” माने जाने वाले सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” ने भी 1933 में काशी नागरी प्रचारिणी द्वारा प्रकाशित आचार्य अभिनंदन ग्रंथ के समर्पण के मौके पर कहा था-” आचार्य द्विवेदी आधुनिक हिंदी के निर्माता और विधाता हैं”
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हम यह याद करना और दिलाना दोनों चाहेंगे कि एक सच्चा पत्रकार ही समाज के हर क्षेत्र को श्रेष्ठ लोगों से समृद्ध कर सकता है. बशर्ते उसका ध्येय पत्रकारिता और सिर्फ पत्रकारिता हो. आचार्य द्विवेदी जैसे सिद्धांत हो. निष्ठा हो, समर्पण और जुनून हो. आचार्य द्विवेदी ने सरस्वती का संपादन करते हुए अर्थशास्त्र विज्ञान सामाजिक विज्ञान इतिहास पौराणिक संदर्भों पर भी अपनी विशद लेखनी चलाई.
आइए!हम इस दिवस विशेष पर संकल्प ले- हिंदी पत्रकारिता की सांच मिटने नहीं देंगे और उसकी अस्मिता पर आंच नहीं आने देंगे.
बीते चालीस सालों में तहखानों, बेनामी सम्पत्तियों, रियल एस्टेट और हवाला कारोबार में सड़ते नेताओं, व्यापारियों, माफियाओं काले धन पर पनपे कुकरमुत्तों की गटर पत्रकारिता से मुकाबले के लिए स्थापित मीडिया घरानों ने भी चार कानून बनाये हैं। ये नए युग की वैश्विक (पाश्विक?) पत्रकारिता है :
1- जो दिखता है, सो बिकता है। इसलिए टिकने के लिए दिखने और बिकने की रणनीतियां अपनाओ।
2- खबर नहीं, आज विज्ञापन मीडिया की रगों में बहता खून है। सबसे ज़्यादा विज्ञापन सबसे ज़्यादा प्रचार और उसी से चलेगा मीडिया कारोबार। सो स्पेस बेचो, टाइम बेचो। सिद्धांत और एडिटोरियल पॉलिसी बेचो। सब बेचो, टीआरपी खरीदो। टीआरपी बेचो, साधन खरीदो।
3- सरकार अफसर चलाते हैं। अफसरों को उनके मातहत चलाते हैं। ये मातहत भी पीते-खाते हैं। तभी विज्ञापन दिलाते हैं। सो खिलाओ-पिलाओ और कमाओ।
4- खबरें और फोटो हासिल करने के बहुत से साधन हैं। दुनिया छोड़िये अंतरिक्ष तक की खबरें किसी को भी कहीं से भी मिल सकती हैं। वो आपका मीडिया क्यों खरीदे? इसलिए ऐसी खबरें बनाएं, ऐसे विचार पकाएं और लोगों को ऐसे भिड़ाएं कि वो रोज़ अपनी डोज़ के लिए बिलबिलाएं। आसान तरीका है या तो भक्त बनें या रैबीज़ कुम्हारबन जाएं। धुन कोई हो, बस राग अपना गाएं।