शक्ति का दम्भ व सूक्ष्म का डर
कोरोना वायरस का क़हर
अनुपम तिवारी , लखनऊ
कितना भयावह समय है, मनुष्य मनुष्य से दूर है, जीवन सिर्फ घर की चारदीवारियों में सिमट के रह गया है, न रोज की भागमभाग है, न जीविका चलाने के लिए होड़, जैसे समाज ठहर गया है। एक शून्यता हमको चारों ओर से घेरे सी लगती है।बड़े बड़े शहर, जो गतिशीलता और जीवंतता के पर्याय हुआ करते थे, उनकी वीरान सड़कें मानो इंसान से पूछ रही हैं कि अचानक तुमको ये क्या हो गया है? यह तुमने कैसा निर्णय ले लिया है? खुद को कैसे बदल लिया तुमने? अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का, तुम निर्लज्जता से दोहन कर रहे थे, यह जानते हुए भी कि इनका समाप्त हो जाना तुम्हारी ही भावी पीढ़ियों को पंगु कर देगा, आज अचानक से तुम इनसे दूर हो गये। इतनी समझ तुममें कैसे आ गयी कि तुमने अपने राक्षसी वाहनों से वातावरण को लील लेने वाला जहरीला धुवां छोड़ना बंद कर दिया। अपने कल कारखानों, जिन पर तुम्हारी जाति को नाज था, के कानफोड़ू शोर तुमने थाम दिए। यहां तक कि नदियों के किनारे से अपनी सभ्यता शुरू करने वाले तुम जो कल तक अपने इन्ही कारखानों का ज़हर बेशर्मी से इन्ही नदियों में उगल रहे थे, उसको भी तुमने रोक दिया है?? क्या तुम मानव ही हो? क्योंकि मानव से तो इतनी समझदारी की आशा न थी। वह तो ईश्वर की ऐसी बिगड़ैल कृति के रूप में खुद को ढाल चुका था, जिसने न जाने कितनी बार, ईश्वर के नाम पर, ईश्वर को ही शर्मिंदा कर दिया होगा।
प्रकृति का मानव से यह संवाद भले ही काल्पनिक हो, मगर यह सोचने को मजबूर करता है। करोडों वर्ष पहले अफ्रीका के घने जंगलों और दुर्गम कंदराओं में जन्मा, अपनी जिजीविषा, सामर्थ्य और ज़िद के बल पर अन्य जीवों पर निरंतर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर चुका, ईश्वर की अनन्य कृति यह मनुष्य, आज सभी संसाधनों को अपने वश में कर लेने के बाद भी कितना असहाय लग रहा है। वह भी किससे? एक इतने सूक्ष्म अर्द्धजीव से, जिसको कि आंखों से देखना तो दूर, सामान्य यंत्रों से देखना भी मुश्किल है।
इस बात में दो राय नहीं है कि, भूतकाल में सर्वाइवल के इतने सोपान देख, जी और जीत चुका मनुष्य, इस सूक्ष्म हत्यारे जिसको इसी ने covid-19 नाम दिया है, से भी विजयी हो कर ही निकलेगा। युद्ध जैसी इस घड़ी में वह अपने कुछ साथी काल के हाथों खो देगा। परंतु वह फिर उठेगा, फिर उसी तरह नए लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करने लगेगा। लक्ष्य प्राप्ति की यह साधना फिर उससे प्रकृति का अप्राकृतिक दोहन करवाएगी, वह फिर से भूल जाएगा, कि उसने कभी इतना असहाय महसूस किया था, वह भूल जाएगा कि एक सूक्ष्म अर्द्धजीव ने उसको अपनों से, अपने समाज से, अपनी मानवता से दूर कर अपने घरों में कैद कर दिया था।
हाँ वह भूल जाएगा, क्योंकि भूलना उसकी प्रकृति है। वह याद रखना नही जानता। वह तो यह भी भूल चुका है, कि भूलने का उसका यही गुण उसको नित नए राक्षसों के सम्मुख ला कर पटक देता है। प्रकृति की अनदेखी करना ही उसने अपनी प्रकृति बना ली है। उसको गुमान है अपनी शक्ति पर क्योंकि वह हर बार जीत जो जाता है।मगर यह शायद पहला ऐसा राक्षस हो, जो आया ही इसलिए हो, कि भूलने की हमारी इस प्रवृत्ति को रोक दे। हमको यह एहसास करा दे कि स्वयं को शक्तिशाली मान लेने का मनुष्य का ढोंग कितना खोखला था। एक अतिसूक्ष्म राक्षस, जो वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्ण जीव की श्रेणी में भी नही आता, ने पूरी मानवता को घुटनों पर ला दिया। यह समय है चिंतन का, यह समय है गलतियों को ठीक करने का, यह समय है प्रकृति को जानने का, और प्रकृति को आत्मसात करने का और स्वयं को प्रकृति से जोड़ने का।
Thanx everyone for appreciating the article.