मध्यप्रदेश में सियासी दलों और संवैधानिक संस्थाओं में रस्साकशी का दौर
सता ही सर्वोपरि
मध्य प्रदेश में इन दिनों सियासी रस्साकशी जोरों पर है। ये रस्साकशी है सरकार की संभावनाओं को लेकर सियासी दलों में और संवैधानिक संस्थाओं में.. कांग्रेस कहती है कि वो 16 विधायक उसके हैं, जो बीजेपी की कैद में हैं। वो 16 विधायक कहते हैं कि हम अब आजाद हैं, कांग्रेस हमसे कोई उम्मीद न रखे। कमलनाथ सरकार की आखिरी आस भी यही 16 विधायक हैं, अगर ये नहीं लौटे तो आगे चलकर विपक्ष में बैठने का भयावह अनुभव झेलना होगा। बुधवार को बागी विधायकों को लेकर दोनों ही खेमों में जबरदस्त रस्साकशी देखने को मिली. कांग्रेस के दिग्गज चेहरे दिग्विजय सिंह सरकार के आठ मंत्रियों के साथ बेंगलुरू जा पहुंचे और जहां विधायकों से मिलने को लेकर उनकी पुलिस प्रशासन से रस्साकशी देखने को मिली..
दरअसल मध्यप्रदेश की सियासत की ये रस्साकशी है, बाग़ी विधायकों के इस्तीफों के हो जाने और स्वीकार न किए जाने को लेकर। स्पीकर चाहते हैं कि सिंधिया गुट के बाग़ी विधायक आएं, मिलें, बात करें, इस्तीफा सौंपें, तब उसे स्वीकार किया जाएगा। बुधवार को यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है जब दोनों ही पक्षों ने अपनी अपनी दलीलें पेश की.
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दूसरी ओर मध्यप्रदेश सियासत की एक रस्साकशी राजभवन और सरकार के बीच अपने अपने दायरों को लेकर भी जारी है। राज्यपाल लालजी टंडन चाहते थे कि 16 मार्च को बजट सत्र शुरू होते ही कमलनाथ सरकार फ्लोर टेस्ट कराए, लेकिन स्पीकर ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए फ्लोर टेस्ट नहीं कराया, साथ ही सत्र भी 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया। इस बात पर राज्यपाल खफ़ा हो गए, उन्होंने फिर कहा कि 17 मार्च को साबित करके दिखाओ कि सरकार के पास बहुमत है तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल की इस भाषा को असंवैधानिक ठहरा कर करारा जवाब दिया.. सरकार और राज्यपाल दोनों अपने अपने स्टैंड पर कायम हैं। सरकार का मानना है कि उसके 16 विधायक बंधक हैं, जब तक खुली हवा में नहीं आते, कैसा फ्लोर टेस्ट ?
ये रस्साकशी है कांग्रेस और बीजेपी के बीच सरकार बचाने और बनाने को लेकर। बीजेपी ने तो ऑपरेशन लोटस के ज़रिए सरकार को अस्थिर करने का दांव चला ही था कि सिंधिया का कांग्रेस छोड़ने का फैसला लेना, उसके लिए वरदान जैसा हो गया। बीजेपी सिंधिया के 22 विधायकों के ईश्वर प्रदत्त तोहफे को सीने से लगाये बेंगलुरु में बैठकर सही मौके का इंतज़ार कर रही है। ठगी सी कांग्रेस कोशिश में है कि किसी तरह विधायक वापस घर लौट आएं।
ये रस्साकशी है कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच। बीजेपी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गई है। हालांकि मध्य प्रदेश के मौजूदा मामले में अभी सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आना बाकी है।
ये रस्साकशी है एक ही दल के नेताओं की आपसी महत्वाकांक्षाओं को लेकर। कैसे सिंधिया की संभावनाओं को धूमिल कर कमलनाथ मप्र के मुख्यमंत्री बने। कैसे सिंधिया हाशिये पर आए, कैसे वो अपनी अनदेखी से ख़फ़ा होकर बीजेपी के हो गए।
ये रस्साकशी है राजनीति के प्रचलित सिद्धांतों और मौजूदा दौर के बीच। अब सत्ता ही सर्वोपरि है। चाहे कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस विधायकों के इस्तीफे दिलवाकर सरकार बनाना हो, या महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ जनादेश पाने वाली शिवसेना का विरोधियों के साथ सरकार बना लेना। बिहार, हरियाणा, गोआ जैसे राज्यों के बाद अब मप्र भी उसी श्रेणी में आ खड़ा हुआ है।
[9:45 PM, 3/18/2020] Ram Dutt Tripathi: Thanks .