बाज़ार में सन्नाटा क्यों है ?
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बाजार में सन्नाटा है.
दिल्ली सहित कई और शहरों में पहले जैसी चहल-पहल नहीं है.
जाहिर है कि लोग घरों से कम निकल रहे हैं. जनादेश चर्चा में इसी सन्नाटे पर बातचीत हुई.
बातचीत का संचालन हरजिंदर ने किया.
चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल, केरल से राकेश सहाय, रिटेल क्षेत्र के विशेषज्ञ अनिल के जाजोदिया, जनादेश के संपादक अंबरीश कुमार और पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी ने हिस्सा लिया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए हरजिंदर ने कहा कि कोरोना काल मे बाजारों का हाल बुरा है.
बाजारों में मंदी है और इसका असर साफ दिखाई दे रहा है.
दूसरी समस्या बड़े बाजारों का लाकआउट और लोगों की कोरोना को लेकर आशंका को लेकर है.लोग बाजार में जा ही नहीं पा रहे हैं.
मॉल खुले तो हैं लेकिन लोग जा नहीं पा रहे हैं. इसका असर देखा जा सकता है.
चर्चा की शुरुआत करते हुए शंभूनाथ ने कहा कि दिल्ली और एनसीआर में बाजारों में सन्नाटा पसरा है.
लाजपत नगर, साउथ एक्स, ग्रेटर कैलाश व डिफेंस कालोनी पिछले हफ्ते गया तो ज्यादातर दुकानें या जो मॉल थे वह बंद थे. दो-तीन खुले भी थे.
किसी काम से एपल के शोरूम में मैं गया किसी काम से तो मैं इकलौता व्यक्ति था, जबकि आम दिनों में उन शोरूम में भीड़ लगी रहती थी.
दरअसल लोगों के वेतन कम हो गए हैं, इसलिए जरूरी सामानों की खरीदारी पर ही लोग खर्च कर रहे हैं.
ग्रोसरी की दुकान ही चल पा रही है. कपड़ों या जूतों के दुकानों से कोई सामान खरीदना नहीं चाह रहा है.
अनिल जाजोडिया ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए बताया कि बाजार की चर्चा करें, रिटेल की चर्चा करें तो यह समझना जरूरी है कि बाजार चलता किससे है.
बाजार को सामान्यतः माना जाता है बिक्री होगी तो बाजार चलेगा लेकिन मेरा मानना है कि खरीदारी होगी तो बाजार चलेगा.
हमें बाजार की नब्ज को इसी रूप में समझना होगा कि जब उपभोक्ता खरीदेगा तो बाजार चलेगा लेकिन अभी उपभोक्ता वही खरीद रहा है जो जरूरी है.
बिक्री का संबंध भीड़ से भी होता है अब भीड़ ही नहीं है तो खरीदेगा कौन.
शंभूनाथ जी ने जिक्र किया कि दुकानें बंद दिखाई दें तो बहुत सामान्य गणित है कि खर्च चलेगा तो दुकानें खुलेंगी, खर्च नहीं निकलेगा तो दुकानें बंद रखना ही फायदे का सौदा है.
इसके अलावा कोई भी बड़ा बाजार सिर्फ स्थानीय ग्राहकों से नहीं चलता.
वह सौ किलोमीटर के दायरे के ग्राहकों से जो उत्सवों के दौरान खरीदारी करते हैं और जब उत्सव है ही नहीं तो खरीदारी कौन करेगा.
हमलोगों ने खुद भी जरूरी चीजों के अलावा और खरीदारी नहीं की है. उत्सव बंद है तो खरीदारी बंद है और बाजार बंद है.
बाजार में यह प्रभाव बड़े रूप में है और बाजार की चिंताओं को हमें समझना होगा.
राकेश सहाय ने दक्षिण भारत के बाजार का जिक्र करते हुए कहा कि इसे कोविड के चश्मे से देखने की जरूरत है.
हालात यहां भी देश के दूसरे हिस्सों से अलग नहीं है.
शादी-ब्याह तक में भी लोगों की पाबंदी लगी है. इसका असर तो दिख ही रहा है.
हालांकि राकेश सहाय ने कहा कि बाजार के सन्नाटे को बहुत हद तक ऑनलाइन खरीदारी ने पूरा कर लिया लेकिन यह भी सही है कि जरूरी चीजों पर ही लोगों ने खरीदारी को केंद्रित रखा है.
दक्षिण भारत में कई सारे स्वीमिंग पूल में लोग मछलियां पालने लगे हैं ताकि इस संकट में अपने को सर्वाइव कर सकें.
इसी तरह बड़े-बड़े मॉल में दुकानें बंद होने लगी हैं तो हालात बहुत बेहतर अच्छे नहीं है.
खतरा तो है लेकिन अवसर भी है, लेकिन मेरा मानना है कि वैक्सिन आने के बाद फिर सब कुछ पटरी पर आजाएगा.
प्रभाकर मणि तिवारी ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि देश के बाकी हिस्सों की तरह ही कोलकाता के हालात भी अलग नहीं है.
कोलकाता को लेकर माना जाता था कि दस रुपए रोज में भी पेट भर सकता है.
लेकिन अब हालात अलग हैं. लोग दस रुपए भी कमा नहीं पारहा है.
अनलाक के दौरान मॉल खुले लेकिन लोग खरीदारी के लिए नहीं घूमने के लिए गए जो घरों मे बंद-बंद ऊब गए थे.
लोगों के पास पैसा नहीं है इसलिए खरीदारी बढ़ी नहीं है.
मोहल्ले से कामचलाऊ खरीदारी हो रही. दुर्गा पूजा आने वाली है लेकिन बाजार ठंडा है.
आमतौर पर इन दिनों बाजार में तिल रखने की जगह नहीं होती और हजारों करोड़ का कारोबार होता जूतों का कपड़ों का. लेकिन बाजार में सन्नाटा पसरा है.
अंबरीश ने लखनऊ का जिक्र करते हुए कहा कि लखनऊ मुगलई व्यंजनों का गढ़ है लेकिन पिछले चार-पांच महीने से जितने रेस्तरां थे, जितने होटल थे बंद हैं.
लोग खाने के शौकीन थे. इससे जुड़े लोग बेरोजगार हैं. शाही रसोई बंद हो गई है जिनमें 20-25 हजार लोगों को खाना खिलाया जाता था, वह बंद है.
लखनऊ के मार्केट, लखनऊ के मॉल लोग जा नहीं रहे हैं. लोगों में डर है.
छोटे-छोटे बाजार जरूर खुले हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर व्यवसाय पर असर पड़ा है.
दुर्गा पूजा आ रही है उसका असर कोलकाता में ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी पड़ा है.
लखनऊ के हालात भी बेहतर नहीं कहा जा सकता. छोटे शहरों का भी वही हाल है.
उत्तराखंड का हाल भी ऐसा ही है क्योंकि चालीस से पचास फीसद दुकाने बंद हैं.
हरजिंदर ने चर्चा का अंत करते हुए कहा कि सवाल यही है कि डर कब खत्म होगा, वैसे हम यह भी जानते हैं कि डर के आगे जीत है.
प्रस्तुति : फजल इमाम मल्लिक