कृषि-उत्पाद के मूल्य, सब्सिडी और तुलनात्मक मूल्य, वेतन वृद्धि

देश में उद्योगों को विभिन्न मदों में कुल छूट 10लाख करोड़ रुपए से अधिक की प्राप्त होती है। जबकि, वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कुल मिलाकर किसानों को 3.25 लाख करोड़ रुपए की कुल सब्सिडी ( खाद, बीज, एमएसपी, बिजली व अन्य सभी मदों में दी जाती है)। कृषि मूल्य में शामिल की जाने वाली लागतो का मसला सदैव अनुत्तरित रहा है, जिसमें कृषक के श्रम का मूल्य सम्मिलित नहीं होता, जबकि कृषि उत्पादों की कीमतें नियंत्रित होती हैं।

इसके विपरीत, औद्योगिक उत्पादन की कीमतों पर उस प्रकार का नियंत्रण भी नहीं है और बाजार और वर्तमान मूल्य पर समस्त लाग ते भी कीमतों में शामिल की जाती हैं। जहां तक तुलनात्मक – रूप से मूल्य और वेतन वृद्धि का मसला है, 1970 में गेहूं का समर्थन मूल्य ₹ 76 प्रति क्विंटल था जो वर्तमान में ₹1975 है, अर्थात इसमें 26 गुना की वृद्धि हुई है।

जबकि, इस कालखंड में ही केंद्रीय कर्मचारियों की आय 130 गुणा और अध्यापकों की आय में 320 से 380% की वृद्धि हुई है। इस प्रकार, कृषि कार्य की समस्त परेशानियों को अलग कर देने पर भी लागत और मूल्य का मसला गंभीर है जिसके कारण बहुसंख्यक किसान केवल जीविकोपार्जन कर पाते हैं। जबकि औद्योगिक उत्पादन में पर्याप्त लाभ और शासकीय कर्मियों को वेतन वृद्धि के द्वारा गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर और बचत की सुविधा प्राप्त होती है।

इस प्रकार, कृषि क्षेत्र को सदैव विशेष रियायत और सुविधाओं की आवश्यकता होती है और यह विश्व के समस्त विकसित राष्ट्रों में भी दी जाती हैं। अमेरिका में कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी बहुत अधिक और आश्चर्य चकित करने वाली है।

अर्थव्यवस्था की सामान्य समझ रखने वालों को यह ज्ञात है कि, कृषि अर्थव्यवस्था का आधार है और अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्र और समस्त जनसंख्या को खाद्यान्न के माध्यम से जीवन प्रदान करती है, एवं अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चा माल उपलब्ध कराती है। अतः कृषि क्षेत्र को सुदृढ और लाभकारी बनाए बिना सुदृढ – अर्थव्यवस्था का निर्माण नहीं किया जा सकता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

1 × 2 =

Related Articles

Back to top button