कंगना रानौत किसके दम पर बोल रही हैं?

फजल इमाम मलिक

 कंगना रानौत के एक ट्वीट ने बवाल खड़ा कर डाला है. उन्होंने मुंबई की तुलना पीओके से किया. इस पर हंगामा खड़ा हुआ. हंगामा बढ़ा और बात बाप से लेकर मराठी अस्मिता तक पहुंच गई.

कंगना रानौत का यह बहुचर्चित बयान जनादेश लाइव में शुक्रवार को चर्चा का विषय रहा. कंगना रानौत ,  मुंबई और पीओके-निशाना कहां पर बातचीत हुई.

 चर्चा में फिल्म पत्रकार व सामाजिक सरोकारों पर पकड़ रखने वाले अजय ब्राह्मताज, पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी, हरजिंदर और जनादेश के संपादक  अंबरीश कुमार ने हिस्सा लिया.बातचीत का संचालन किया राजेंद्र तिवारी ने,

पूरी चर्चा सुनने के लिए क्लिक करें https://youtu.be/CdQibCBedEI

 हरजिंदर ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत से अपनी बात शुरू की और कहा कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर अब सियासत होने लगी है.

बिहार चुनाव, भाजपा और शिवसेन की राजनीति के अलावा मराठा लाबी के साथ-साथ फिल्मी दुनिया की राजनीति भी जुड़ गई है.

हरजिंदर ने कंगना रानौते के नए ट्वीट पर चर्चा करते हुए इसे फिल्मी दुनिया की सियासत सेजोड़ते हुए कहा कि फिल्मी दुनिया में ड्रग्स का मामला आम बात है, कुछ भी नया नहीं है.

उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई की पुलिस कुछ नहीं करती और उन्हें डर लगता है.

कंगना के ट्वीट पर शिवसेना नेता ने जवाब देते हुए कहा कि अगर उन्हें डर लगता है तो वे मुंबई न आए.

कंगना ने पलट कर मुंबई को पीओके कहा तो बवाल बढ़ा.

इसके बाद दो बातें हुईं. पहली फिल्मों में जो मराठा लाबी है उन्होंने कंगना रानौत की आलोचना शुरू कर दी. लेकिन महाराष्ट्र् के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने जो कहा वह उन्हें नहीं कहना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि जिन्हें मुंबई में डर लगता है, मुंबई पुलिस से डर लगता है उन्हें मुंबई में रहने का कोई अधिकार नहीं है.

हरजिंदर ने पिछली घटनाओं का भी जिक्र किया और कहा कि यह अजब सा चलन हो गया है अधिकार को लेकर. पिछले कुछ समय से ऐसा देखा जा रहा है कि कोई भी कहता है कि उन्हें डर लग रहा है तो उनसे कहा जाते है कि तुम्हें रहने का अधिकार नहीं है, पाकिस्तान चले जाओ.

शिवसेना यूं बरसों से इसी तरह की सियासत करती रही है. सरकार में आने के बाद लगा था कि उनके रुख में बदलाव आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

इसका दूसरा पक्ष भी है. कंगना रानौत यह सब कर रही हैं तो इसके पीछे सियासत भी है. भाजपा को सत्ता से बेदखल होने का कसक है और कंगना सियासी हथियार बन गई हैं.

अजय ब्रहमात्मज  ने  कहा कि कंगना बयान देखा हुआ, भुगता हुआ और अनुभव किया हुआ है. चाहे वह नेपोटिज्म का मामला हो, आउटसाइडर का मामला हो, ड्रग्स का मामला हो.

लेकिन वे चीजों को सामान्यीकरण कर आत्ममुग्धता का शिकार होती हैं, यानी किसी की फिक्र करती हैं तो उसे अपने से अलग कर नहीं देखतीं और यह बात उनके खिलाफ चली जाती है.

उनकी बातें खुद से शुरू होकर खुद पर खत्म होती हैं.

यहां भी यह आत्मुग्धता को देखा जा सकता है. पीओके का उद्हारण उन्होंने जो दिया, उन्हें इसके बारे में पता तक नहीं होगा.

कंगना की मुंबई को पीओके कहना लापरवाह टिप्पणी थी और उतनी ही लापरवाह टिप्पणी संजय राउत या अनिल देशमुख की रही.

लेकिन इन टिप्पणियों की वजह से मुंबई और फिल्म उद्योग की छवि को खराब करने की कोशिश की जा रही है.

फिल्म उद्योग में लाख बुराई हो, ड्रग्स है फिल्म उद्योग में भी, लेकिन समाज में भी है. कंगना का सिर्फ मुंबई को निशाना बनाना सही नहीं है क्योंकि ड्रग्स का कारोबार पूरे देश में फैला है.

भाजपा यानी केंद्र सरकार के निशाने पर है मुंबई. सारी संस्थानों पर उनका कब्जा हो गया. चुनाव आयोग से लेकर अदालतों तक पर उनका कब्जा है. मुंबई का फिल्म उद्योग का एक स्वर अभी तक धर्मनिरपेक्ष बना हुआ है,

भले अंदरूनी तौर पर दरारें पड़ चुकीं हों लेकिन बाहरी स्वरूप अभी भी उसका बरकरार है. फिल्म उद्योग सेक्युलर इंडस्ट्री है और यहां हर किसी को काम मिलता है.

हिंदू-मुसलमान, सिख-ईसाई जिसमें भी प्रतिभा होती है वह टाप पर जाता है. लेकिन अब इस नैरेटिव को बदलने की कोशिश की जा रही है.

भाजपा वह इसे लेकर परेशान है कि यहां का सबसे मशहूर स्टार खान क्यों है. क्यों नहीं उन्हें पद्च्यूत किया जाए और वैसे कलाकारों को बढ़ावा दिया जाए जो हिंदुत्व के झंडाबरदार माने जाते हैं, इनमें अक्षय कुमार और कंगना रनौत को रखा जा सकता है.

इन्हें सरकारी संरक्षण मिलता है. कंगना भाजपा से ज्यादा नजदीक आ गई है.

इसने उन्हें अतिरिक्त ताकत मिलती है और वे समझती हैं कि हिंदू, हिंदुत्व और राष्ट्रीयता, जिसे वे परिभाषित करती हैं, उसकी वही चौकीदार है.

वे जो कहें सारे लोग वही कहें और जो लोग उनसे असहमत होते हैं  उनके साथ वे बातचीत भी नहीं करती हैं. इसी अत्ममुगध्ता की वजह से उनकी बातों का वजन कम होता जा रहा है.

सुशांत की मौत में ड्रग्स का ऐंगल आ गया. फिल्म उद्योग में लगभग सभी लोग लेते हैं, कई कारणों से,कई धारणाओं से. फिल्म जगत में छोटे से लेकर बड़े कलाकारों तक की पार्टियों में ड्रग्स लिया जाता है.

लेकिन कुछ अच्छी बातें भी होती हैं आनंद की अवस्था में ही फिल्म बनाने की बातें भी होती हैं, कलाकारों का चयन भी होता है और फिल्में बनती हैं.  सिर्फ इंडस्ट्री को निशाना बना कर देश में चल रहे इस धंधे को खत्म नहीं किया जा सकता.

चुंकि फिल्म जगत को चमकदार माना जाता है और उससे जुड़े लोगों को आदर्श माना जाता है, उनमें यह बुराइयां नहीं होनी चाहिए. लेकिन पूरे समाज में, देश के युवाओं में जो दोष है उसी अनुपात में फिल्मों में भी है.

यह आरोप लग रहा है बार-बार कि फिल्म उद्योग में सब कुछ गलत हो रहा है, यह ठीक नहीं. तीन महीने में पहली बार प्रोड्यूसर गिल्ड ने प्रेस बयान जारी कर उद्योग को बदनाम करने को लेकर गहरी नाराजगी जताई है.

अंबरीश कुमार ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि पूरी लड़ाई सियासी है. सुशांत सिंह राजपूत की मौत का राजनीतिक तरीके से उठाया गया.

यह सियासी लड़ाई दोनों हिंदुत्व वाली धारा के बीच चल रही है. शिवसेना है जो कट्टर बहुत कट्टर हिंदुत्व वाली पार्टी है तो भाजपा थोड़ा नरम हिंदुत्व की बात करती है.

भाजपा और शिवसेना के बीच बड़ी लड़ाई है जिसमें फिल्म जगत के लोग मोहरा बन रहे हैं, यह आज से नहीं पहले से हो रहा है. कंगना रनौत के बयान के पीछे भाजपा है इस बात को बच्चा-बच्चा जानता है.

दूसरी तरफ शिवसेना बल्लेबाजी कर रही है तो इसका सीधा मतलब है कि भाजपा और शिवसेना की टकराहट फिल्म जगत की तरफ मुड़ गई है.

फिल्म जगत में हिंदुत्व वाली ताकतें हैं, अनुपम खेर हैं. लेकिन यह पूरी तरह सियासी लड़ाई बन गई है. इसमे कंगना मोहरा बन गई हैं भाजपा की और शिवसेना रिएक्ट कर रही है.

भाजपा और शिवसेना के रिश्तों की पड़ताल भी करें. पहले भी शिवसेना इसी तरह करती रही है लेकिन तब भाजपा  ने कभी विरोध नहीं किया. लेकिन इस बार भाजपा-शिवसेना आमने सामने है और कंगना भाजपा के मोहरे के तौर पर सामने आरही हैं.

रामदत्त त्रिपाठी ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर पटना से लेकर मुंबई तक की सियासत को उठाया और कहा कि ड्रग्स की बात है तो फिल्म जगत में ब्लैकमनी भी है.

उन्होंने कहा कि दरअसल शिवसेना की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी है. त्रिपाठी ने कहा कि कंगना का बयान बहुत मूर्खतापूर्ण है लेकिन सरकार को भी सतर्क बयान देना चाहिए.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हस्तक्षेप करना चाहिए.

कंगना रनौत के बयान को उन्होंने कहा कि निजी लाभ के लिए भी इस तरह का बयान नहीं दिया जाना चाहिए. च

र्चा का लब्बोलुआब यह रहा कि कंगना के कंधे पर बंदूक रख कर भाजपा चला रही है और इन सबके पीछे सियासत ज्यादा है, गंभीरता कम.

.https://youtu.be/CdQibCBedEI

 

 

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