मंदिर-मस्जिद विवाद में आजादी के पूर्व हो चुका था कई बार फैसला
निर्मोही अखाड़े ने किया था पहला मुकदमा, तत्कालीन जरूरतों पर हुए फैसले
अयोध्या का मंदिर – मस्जिद विवाद सदियों पुराना है, जो पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से समाप्त हुआ था।लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस आपराधिक मामले में फैसला आना बाकी है।अयोध्या स्थित विवादित बाबरी मस्जिद छह दिसम्बर 1992 को गिरायी गयी थी।
क़ानूनी दाँवपेंच और जटिल प्रक्रिया के चलते यह मामला अट्ठाईस सालों से ट्रायल कोर्ट में ही लम्बित है।लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत 30 सितंबर को अपना फैसला सुनायेगी।
इस फैसले से पूर्व मीडिया स्वराज के पाठकों के लिए पेश है राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद आंदोलन के सिलसिलेवार इतिहास पर पिछले चालीस वर्ष से अयोध्या पर रिपोर्ट करते आ रहे बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी की विस्तृत रिपोर्ट की पहली किश्त :
बहुत रंग बदला सरयू तट पर बसी अयोध्या का
सरयू तट पर बसी छोटी सी तीर्थ नगरी अयोध्या ने आज़ादी के बाद पिछले 75 वर्षों में लगातार उतार- चढ़ाव और उथल-पुथल देखा है, विशेषकर 1984 के बाद।
इस दौरान वह भारत की राजनीति का केन्द्र बिन्दु बनी रही और दिल्ली तथा लखनऊ में सत्ता परिवर्तन का कारण। उसने कितने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनाये और बिगाड़े हैं।
भारत की राजनीति और इतिहास को बदलते-बदलते अयोध्या का रूप भी बदलता रहा है।
पिछले चालीस सालों के दौरान सरयू के घाट, पुल, बाग- बगीचे और संकरी गलियाँ रणक्षेत्र बनीं।
देशभर में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों के लोगों ने जानें गँवायी, हज़ारों घर बर्बाद हुए।
विवादित बाबरी मस्जिद की इमारत का निशान मिट गया, हालाँकि इतिहास के पन्नों में उसका ज़िक्र होता रहेगा।
इस जद्दोजहद की चपेट में अयोध्या के अनेक मंदिर भी ध्वस्त हो गये। खबरें हैं कि राम मंदिर बनते- बनते अभी कई और ध्वस्त होंगे।
अयोध्या में इस सारी उथल पुथल का केंद्र बिन्दु था राम मंदिर बनाम बाबरी मसजिद विवाद, जिसे सत्तर साल तक चली लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने संविधान में मिली विशेष शक्तियाँ इस्तेमाल करके सुलझाया।
अदालत से बाहर सुलझाने के प्रयास तो बहुत हुए, पर राजनीति ने इस विवाद को इतना उलझाया था कि सुप्रीम कोर्ट का अलावा कोई सुलझा नहीं पाया।
अब पूरा विवादित परिसर भगवान राम लला विराजमान के हवाले है। सरकार ने एक नया ट्रस्ट बनाकर उसे “अपने लोगों” के हवाले कर दिया है। संघर्ष में शामिल अन्य लोग दूर कर दिये गये हैं।
कृपया इसे सुनें :
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मुसलमानों की नयी मस्जिद पचीस किलोमीटर दूर अयोध्या घन्नीपुर गॉंव में बनेगी।
सुनी वक़्फ़ बोर्ड ने इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन कर दिया है, जिसमें मुख्य रूप से वे लोग हैं जो सलाह-समझौते की बातचीत में विवादित भूमि मंदिर के लिए देने के पक्ष में थे।
इस ट्रस्ट में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के संयोजक ज़फ़रयाब जिलानी समेत उन तमाम लोगों को शामिल नहीं किया गया है, जिन्होंने मस्जिद की बहाली के लिए अदालत में और उसके बाहर संघर्ष किया।
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने अभी मस्जिद निर्माण शुरू होने का कोई प्लान नहीं बनाया है।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर
राम जन्मभूमि परिसर, अयोध्या के उत्तर पश्चिम छोर पर रामकोट मोहल्ले में एक ऊँचे पर टीले है।
वहाँ से कुछ ही दूर सरयू नदी बहती है। शायद पहले और क़रीब रही होगी।
किताबों में विवरण मिलता है कि हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर ने पंद्रह सौ ईसवी में सरयू पार डेरा डाला था।
बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने यह मस्जिद बनवायी थी।
विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद इमारत, जिसका ताला 36 साल बाद 1 फ़रवरी 1986 को ज़िला जज फ़ैज़ाबाद के आदेश से खुला लेकिन इसका रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ क्या था?
मस्जिद के रखरखाव के लिए मुग़ल काल, नवाबी और फिर ब्रिटिश शासन में वक़्फ़ के ज़रिए एक निश्चित रक़म मिलती थी।
कहा जाता है कि इस राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर स्थानीय हिन्दुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए।
ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने, बाबरी मस्जिद पर एकत्र होकर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धावा बोला।
उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गयी थी।
हिंदू बैरागियों ने किया हमलावरों का मुकाबला
इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया जो भागकर बाबरी मस्जिद कैंपस में छिपे।
मगर वहाँ भी तमाम मुस्लिम हमलावर क़त्ल कर दिये गये, जो वहीं कब्रिस्तान में दफ़्न हुए।
कई गजेटियर्स, विदेशी यात्रियों के संस्मरणों और पुस्तकों में उल्लेख है कि, हिंदू समुदाय पहले से इस मस्जिद की जगह को राम जन्मस्थान मानते हुए पूजा और परिक्रमा करता था।
मुसलमान इसका विरोध करते थे, जिससे झगड़े-फ़साद होते रहते थे।
माना जाता है कि इसी दरम्यान हिन्दुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन पूजा शुरू कर दी, जिसको लेकर वहाँ झगड़े होते रहते थे।
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मस्जिद के आहाते में हिन्दुओं को राम चबूतरा के लिए ज़मीन बादशाह अकबर ने दिलवायी थी।
1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद नवाबी शासन समाप्त होने पर ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई।
शायद यह महज़ संयोग नहीं है कि अयोध्या में मस्जिद के स्थान पर झगड़ा 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई के आसपास ही शुरू होता है।
बाबरी मस्जिद के एक मुतवल्ली यानि प्रबंधक मौलवी मोहम्मद असग़र ने तीस नवम्बर 1858 को लिखित शिकायत की कि हिंदू वैरागियों ने मस्जिद से सटाकर एक चबूतरा बना लिया है और मस्जिद की दीवारों पर राम- राम लिख दिया है।
अयोध्या में लम्बे समय तक तैनात एक अधिकारी के अनुसार 1857 की ग़दर में अनेक ब्रिटिश अफ़सरों ने हिंदू वैरागी साधुओं के यहाँ शरण ली थी।
बाद में वैरागियों ने उनसे कहा की हमने आपकी जान बचायी, अब आप हमारे राम की जन्मभूमि में हमारी मदद करें।
तब अंग्रेज अफ़सरों ने राम चबूतरे और मस्जिद के बीच एक दीवार भी खड़ी करवा दी।
मंदिर-मस्जिद विवाद में ब्रिटिश अफ़सरों की भूमिका
ब्रिटिश अफ़सरों ने शांति व्यवस्था क़ायम करने के लिए चबूतरे और मस्जिद के बीच दीवार बनाकर अलग कर दिए थे, पर मुख्य द्वार एक रहा।
इसके बाद भी मुसलमानों की तरफ़ से लगातार लिखित शिकायतें होती रहीं कि हिंदू वहाँ नमाज़ में बाधा डाल रहे हैं।
अप्रैल 1883 में निर्मोही अखाड़ा ने डिप्टी कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को दरखास्त देकर मंदिर बनाने की अनुमति माँगी।
मगर मुस्लिम समुदाय की आपत्ति पर दरखास्त नामंज़ूर हो गयी।
इसी बीच मई 1883 में लाहौर निवासी गुरमुख सिंह पंजाबी राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद की जगह पर पत्थर वग़ैरह सामग्री लेकर आ गया और प्रशासन से मंदिर बनाने की अनुमति माँगी।
मगर प्रशासन ने वहाँ से पत्थर हटवा दिये।
इसके बाद जनवरी 1885 में निर्मोही अखाड़े के महँत रघुबर दास ने चबूतरे को राम जन्मस्थान बताते हुए भारत सरकार और मोहम्मद असग़र के ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में पहला मुक़दमा दायर किया।
मुक़दमे में 17 गुना 21 फ़ीट लम्बे चौड़े चबूतरा जनमस्थान पर मंदिर बनाने की अनुमति माँगी गयी, ताकि पुजारी और भगवान दोनों धूप, सर्दी और बारिश से निजात पाएँ।
इसमें दावा किया गया कि वह इस ज़मीन के मालिक हैं और उनका मौक़े पर क़ब्ज़ा है।
सरकारी वक़ील ने जवाब में कहा कि वादी को चबूतरे से हटाया नहीं गया है, इसलिए मुक़दमे का कोई कारण नहीं बनता।
मोहम्मद असग़र ने चबूतरा पर मंदिर की दरखास्त का विरोध किया।
असग़र ने अपनी आपत्ति में याद दिलाया कि प्रशासन इससे पहले भी बार-बार मंदिर बनाने से रोक चुका है।
विवाद पर जज पंडित हरिकिशन का फ़ैसला
जज पंडित हरिकिशन ने मौक़ा-मुआयना किया और पाया की चबूतरे कि चबूतरे पर भगवान राम के चरण बने हैं और मूर्ति थी, जिनकी पूजा होती थी।
इसके पहले हिंदू और मुस्लिम, दोनों यहाँ पूजा और नमाज़ पढ़ते थे। बीच की दीवार झगड़ा रोकने के लिए खड़ी की गयी।
जज ने मस्जिद की दीवार के बाहर चबूतरे और ज़मीन पर हिंदू पक्ष का क़ब्ज़ा भी सही पाया।
इतना सब रिकार्ड करने के बाद जज पंडित हरिकिशन ने यह लिखा कि चबूतरा और मस्जिद बिलकुल अग़ल-बग़ल हैं।
दोनों के रास्ते एक हैं और मंदिर बनेगा तो शंख, घंटे वग़ैरह बजेंगे, जिससे दोनों समुदायों के बीच झगड़े होंगे, लोग मारे जाएँगे।
इसीलिए प्रशासन ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी थी।
जज ने यह कहते हुए निर्मोही अखाड़ा के महँत को चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया कि ऐसा करना भविष्य में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दंगों की बुनियाद डालना होगा।
इस तरह बाबरी मस्जिद के बाहरी कैंपस में राम मंदिर बनाने का पहला मुक़दमा निर्मोही अखाड़ा साल भर में हार गया।
निर्मोही अखाड़े की अपील
डिस्ट्रिक्ट जज चैमियर की कोर्ट में अपील दाख़िल हुई। मौक़ा मुआयना के बाद उन्होंने तीन महीने के अंदर फ़ैसला सुना दिया।
फ़ैसले में डिस्ट्रिक्ट जज ने कहा, “ हिन्दुओं द्वारा पवित्र मानी जानी वाली जगह पर मस्जिद बनाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन चूँकि यह घटना 356 साल पहले की है, इसलिए अब इस शिकायत का समाधान करने के लिए बहुत देर हो गयी है।”
जज ने लिखा कि, “ इसी चबूतरे को रामचंद्र का जन्मस्थान कहा जाता है।”
साथ ही जज ने यह भी कहा कि अब यथास्थिति में बदलाव से कोई लाभ होने के बजाय व्यवस्था क़ायम रखने में नुक़सान ही होगा।
चैमियर ने सब जज हरि किशन के जजमेंट का यह अंश अनावश्यक कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि चबूतरे पर पुराने समय से हिन्दुओं का क़ब्ज़ा है और उसके स्वामित्व पर कोई सवाल नहीं उठ सकता।
निर्मोही अखाड़ा ने इसके बाद अवध के जुड़िशियल कमिश्नर डब्लू यंग की अदालत में दूसरी अपील की।
यंग ने 1 नवम्बर 1886 को अपने जजमेंट में लिखा कि अत्याचारी बाबर ने साढ़े तीन सौ साल पहले जानबूझकर ऐसे पवित्र स्थान पर मस्जिद बनायी जिसे हिंदू रामचंद्र का जन्मस्थान मानते हैं।
इस समय हिन्दुओं को वहाँ जाने का सीमित अधिकार मिला है और वे सीता रसोई और रामचंद्र की जन्मभूमि पर मंदिर बनाकर अपना दायरा बढ़ाना चाहते हैं।
लेकिन जजमेंट में यह भी कह दिया गया कि रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे ज़मीन पर हिंदू पक्ष का किसी तरह का स्वामित्व दिखे।
फैसलों में तत्कालीन जरूरत पर ज्यादा ध्यान
इन तीनों अदालतों ने अपने फ़ैसले में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल के बारे में हिन्दुओं की आस्था, मान्यता और जनश्रुति का उल्लेख किया।
लेकिन फ़ैसला रिकार्ड पर उपलब्ध सबूतों को आधार पर दिया। तीनों जजों ने और शांति व्यवस्था की तत्कालीन ज़रूरत पर ज़्यादा ध्यान दिया। इसलिए मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी।
हालाँकि अब पीछे मुड़कर देखने पर लगता है की अगर उस समय चबूतरे पर मंदिर बन गया होता तो शायद आज़ादी के बाद नए सिरे से विवाद नही पैदा होता।
न लोगों को राजनीति करने का मौक़ा मिलता। न दंगा फ़साद होता।
सन 1934 में बक़रीद के दिन अयोध्या के पास के एक गाँव में गोहत्या को लेकर दंगा हुआ। बताते हैं कि उस समय अलवर की महारानी वहाँ कैम्प कर रही थीं।
गोहत्या से नाराज़ रानी ने अयोध्या के वैरागियों से बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई करवा दी। मस्जिद के तीनों गुम्बद क्षतिग्रस्त हो गये।
ब्रिटिश प्रशासन ने सामूहिक जुर्माना लगाकर इसकी मरम्मत करवा दी।
यही वजह थी कि छह दिसम्बर को कारसेवकों को ऊपर से गुम्बद तोड़ने में काफ़ी मुश्किल हुई। फिर किसी जानकार ने दीवार्रें तुड़वायीं।
गुम्बद गिरे तो मलवे में सन 1931 के बाद की ईंटें मिलीं, जो मरम्मत में लगायी गयी थीं।
मस्जिद को लेकर शिया-सुनी झगड़ा
इस मस्जिद को लेकर मुसलमानों में आपस में भी झगड़ा हुआ है।
1936 में मुसलमानों के शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच इस बात पर क़ानूनी विवाद उठ गया कि मस्जिद किसकी है?
वक़्फ़ कमिश्नर ने इस पर जाँच बैठायी। मस्जिद के मुतवल्ली अथवा मैनेजर मोहम्मद ज़की का दावा था कि मीर बाक़ी शिया था, इसलिए यह शिया मस्जिद हुई।
लेकिन ज़िला वक़्फ़ कमिश्नर ए मजीद ने 8 फ़रवरी 1941 को अपनी रिपोर्ट में कहा की मस्जिद की स्थापना करने वाला बादशाह बाबर सुन्नी था।
मस्जिद के इमाम तथा नमाज़ पढ़ने वाले सुन्नी हैं, इसलिए यह सुन्नी मस्जिद हुई।
मामला यहीं नही थमा। इसके बाद शिया वक़्फ़ बोर्ड ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ सिविल जज फ़ैज़ाबाद की कोर्ट में मुक़दमा कर दिया।
सिविल जज एस ए अहसान ने 30 मार्च 1946 को शिया समुदाय का दावा ख़ारिज कर दिया।
इसी बुनियाद पर शिया समुदाय के कुछ नेता इस अपनी मस्जिद बताते हुए मंदिर निर्माण के लिए ज़मीन देने की बात करते थे।
आजादी के बाद फिर हलचल
जब अंग्रेज़ी राज ख़त्म होने को आया तो हिन्दुओं की तरफ़ से फिर चबूतरे पर मंदिर निर्माण की हलचल हुई।
लेकिन सिटी मजिस्ट्रेट ए शफ़ी ने दोनो समुदायों से लिखित आदेश पारित किया कि न तो चबूतरा पक्का बनाया जायेगा, न मूर्ति रखी जायेगी और दोनों पक्ष यथास्थिति बहाल रखेंगे।
इसके बाद भी मुसलमानों की ओर से लिखित शिकायतें आती रही कि हिंदू वैरागी नमाज़ियों को परेशान करते हैं।
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देश विभाजन के बाद बड़ी तादाद में अवध के मुसलमान, विशेषकर प्रभावशाली मुसलमान पाकिस्तान चले गए।
विभाजन के दंगों को रोकने और साम्प्रदायिक सौहार्द क़ायम करने की कोशिश में लगे महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी।
क्रमश:
लेखक राम दत्त त्रिपाठी, लगभग चालीस वर्षों से राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद का समाचार संकलन करते रहे हैं। वह क़ानून के जानकार हैं। लम्बे अरसे तक बीबीसी के संवाददाता रहे। उसके पहले साप्ताहिक संडे मेल और दैनिक अमृत प्रभात में काम किया।
ये लेखक के निजी विचार हैं।