आ रहे हैं किसानी मिटाने के दिन
डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी (प्रयागराज)
देश के नक़्शे में अभी भी
वह जिला है
जिस जिले में मेरा गाँव है
गांव के नक़्शे में मेरे नाम
पुरखों के वे खेत दर्ज हैं
जिन खेतों से मैं किसान हूँ
भले मैं अधिया पर ही
किसानी करता हूँ
पर बरस दो बरस बाद भी
खेत के मेड़ों सेजब गुजरता हूँ
ये खेत पहिचान लेते हैं
मैं फैलाने का नाती हूँ
खेती किसानी किसान की
अस्मिता से जुड़ा है
जो अब दरक रहा है
हीरे जवाहिरात सोने चांदी से भी
बेहद कीमती मेरे गांव की माटी को
कोई बर्बर लुटेरा ऊंटों पर लादकर
या जहाज़ों में भर कर ले नहीं जा पाया था
बार बार लुटे जाने पर भी
मेरे पुरखे अपनी माटी से
जिसे कोई पराधीन नहीं कर पाया था
हर बार
हीरे जवाहिरात सोने चांदी की फसलें
अपनी किसानी से उगा लेते थे
लोक गर्व से उद्घोष करता था