थक गया हूँ इन घडों को ढ़ोते- ढ़ोते

आवाज़ आई, ” मैं……. जिसकी छाव में तुम बैठे, वो पीपल हूँ,”. “क्या हुआ? तुम रो क्यूँ रहें हो,” मैंने प्रश्न किया. उसने कहा, ” उसी भावना से जिससे तुम दुःखी लग रहे हो. मैंने कहा, “तुम……तुम तो वृक्ष हो. तुम कब से इंसानी भावनाएं महसूस करने लगे.” पीपल ने व्यंगात्मक भाव से उत्तर दिया, “इंसानी भावनाएं, अच्छा! ठीक याद दिलाया तुमने, तुम्हारा मन इस दुःख में अवचेतन अवस्था में है, परन्तु मैं इस दुःख के साथ भी चैतन्य हूँ.