गाँव की प्रेम पाती अपने चाहने वालों के नाम…!!

जी हाँ मैं गाँव हूँ, जो धड़कता रहता है हर उस शख्स के अंदर जिसने मुझे अपनी आत्मा में ओढ़ रखा है। क्योंकि किसी कोढ़ी मनुष्य के तन में वो आत्मा हो ही नहीं सकती, जो मुझे ओढ़ ले। अब तलक कायनात में वो रूह ही नहीं उतरी, जिसने मुझे कभी न कभी जिया न हो। मैं तो रूह को फानी कर देने वाली हवाओं से संवरा हूँ। महज़ मेरी सौंधी मिट्टी की खुशबू मरती हुई काया में प्राण फूँक सकती है। क्योंकि मैं गाँव हूँ। जी हाँ मैं गाँव हूँ। मैं ही गाँव हूँ और मैं शाश्वत हूँ। मैं ही शाश्वत हूँ।