छात्रों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या: समस्या एवं समाधान
बच्चों का एडमिशन तो आरक्षण के आधार पर हो जा रहा है लेकिन मैक्सिमम बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में फर्स्ट सेमेस्टर ही क्वालीफाई नहीं कर पाते और कई बच्चे तो 5 साल 6 साल 7 साल से फर्स्ट सेमेस्टर में ही हैं, अब ऐसी स्थिति में आप उन बच्चों की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं कि ये बच्चे किस मानसिक स्तर से गुजर रहे होंगे। पहले तो फिर भी और सफलता पाने का पैमाना इतना स्ट्रिक्ट नहीं हुआ करता था लेकिन आज की डेट में अगर बच्चों के साथ वैसा होता होगा तो लगातार बने रहने वाले स्ट्रेस के कारण बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने के चांस ज्यादा हैं।
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