कवि टामस ग्रे की ”एलेजी” और प्रसाद की कामायनी का सादृश्य होना अनायास

भिन्न भाषायी काव्य रचनाओं के दो मिलते—जुलते प्रतिपाद्य का यहां जिक्र है। इनमें संभावनाओं, संयोग और संजीदगी का पुट ढेर में है। अत: मन को नीक लगता है। कल्पना को झकझोरता है। हृतंत्री को निनांदित भी। संदर्भ है कवि टामस ग्रे की ”एलेजी” (शोक—गीत) जिसकी बरसी (1752 में रचित) आज, फरवरी 16, पड़ती है। इत्तिफाक से बंसत पंचमी पर ही। सृजन तथा नवसंचार का माहौल भी है। कामायनी (जयशंकर प्रसाद की कालजयी कृति) से इसका सादृश्य होना अनायास ही हैं।