आपातकाल के सबक : आम जन को जागरूक करने की ज़रूरत
वाकई आपातकाल और उस अवधि में हुए दमन-उत्पीड़न और असहमति के स्वरों को दबाने के प्रयासों को आज भी न सिर्फ याद रखने बल्कि उनके प्रति चौकस रहने की भी जरूरत है ताकि देश और देशवासियों को दोबारा वैसे काले दिनों का सामना नहीं करना पड़े. ताकि भविष्य में भी कोई सत्तारूढ़ दल और उसका नेता वैसी हरकत की हिमाकत नहीं कर सके जैसा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून 1975 की दरम्यानी रात में किया था. देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर नागरिक अधिकार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताएं छीन ली गई थीं. लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित तमाम राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों, ठिकानों से उठाकर जेलों में डाल दिया गया था. अभिव्यक्ति की आजादी पर सेंसरशिप का ताला जड़ दिया गया था. पत्र-पत्रिकाओं में वही सब छपता और आकाशवाणी-दूरदर्शन पर वही प्रसारित होता था जो उस समय की सरकार चाहती थी.
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