असहमति को कुचलना लोकतंत्र नहीं है

र्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लेकर शासन, प्रशासन और नगरीय निकाय तक, ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन क्रम में लोकतंत्रात्मक तौर तरीकों में वैसी समझ, संस्कार भारत के लोकमानस में पचहत्तर साल के बाद भी खड़ी नहीं हो सकी है, जो एक जीवन्त लोकतंत्रात्मक समाज और सरकार में होना चाहिए.