पैतृक गाँव खेवली में “धूमिल” की 85वीं जयन्ती

प्रोफेसर बीएचयू प्रकाश शुक्ल ने कहा कि गांव की असली संस्कृति धूमिल की कविताओं में दिखती है। बीएचयू के डॉ. रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि धूमिल का काल विचार के संघर्षो का काल था। डॉ0 विनोद राय ने कहा कि आम आदमी की आवाज को पहचाने की क्षमता धूमिल की कविता में दिखती है। कवि शिवकुमार ‘पराग’ ने कहा कि धूमिल की रचनाएं जनतंत्र के लिए जागरण का माध्यम है।