भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के विकास में बाधक हैं ये काले कानून!!

​​ध्यान देने योग्य यह है कि उक्त परिभाषा के अनुसार, आयुर्वेद,यूनानी और सिद्ध चिकित्सा पद्धतियां ‘चिकित्सा’ के अंतर्गत नहीं आतीं।इतना ही नहीं, जून 1964 में उक्त अधिनियम की धारा 15 में एक उपधारा जोड़ी गई जिसमें स्पष्ट प्रावधान था कि कोई ऐसा व्यक्ति जो स्टेट मेडिकल काउंसिल या मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया में पंजीकृत नहीं है, वह किसी भी राज्य में “मेडिसिन” की प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा क्योंकि मेडिसिन कर अर्थ तो आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा ही थी। ऐसा करते हुये पाये जाने पर जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया था।