हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन विवाद : फर्जी डाटा और नक़ली बौद्धिकता से वैज्ञानिक शोधों पर खतरा

डा चंद्रविजय चतुर्वेदी, वैज्ञानिक, प्रयागराज

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

कोविड -19 की महामारी से सारी दुनिया को जूझते पांच महीने हो गए सिवाय बचाव के कोई अन्य रास्ता कोई भी देश ढूंढ नहीं पाया। आर्थिक तंगी अलग हाहाकार मचाये हुए है। दुर्भाग्य है की विश्व की राजनीति भी शांत नहीं है। कोरोना संक्रमण इलाज की खोज में भी दुनिया में आपाधापी मची है। इस विचित्र मर्ज के पहचान के लिए आवश्यक रियजेंट ,वैक्सीन ,ड्रग आदि के खोज के साथ साथ वैज्ञानिक अन्य मर्जों में प्रयोग किये जा रहे ड्रग पर भी माथापच्ची करते रहे।

फ़्रांस के वैज्ञानिकों का ध्यान एंटी मलेरियल ड्रग हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन -hcq की और गया और प्रारंभिक परिक्षण के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला की hcq के प्रयोग से कोविड -19 से संक्रमित प्राथमिक स्तर के मरीज का बचाव किया जा सकता है। भारत hcq का निर्यातक देश है यह ड्रग अर्थराइटिस में भी प्रयोग किया जाता है। इस शोधके आधार पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अच्छे प्रचारक के रूप में उभरे। ट्रंम्प ने भारत सरकार पर दबाव डलवाकर अमेरिका के लिए इसकी आपूर्ति भी करवा ली। कई देशों में hcq का प्रयोग अजोथोमाइसिन एंटिबाइटिक के साथ कोरोना सक्रमण के निदान के लिए होने लगा। hcq के सम्बन्ध में राष्ट्रपति ट्रैम्प ने पब्लिकली कहा की hcq आश्चर्यजनक ड्रग है जो कोरोना संक्रमण के निदान के लिए उपयोगी है।

मई 20 तक दुनिया के सामने इस संक्रमण से मुक्ति हेतु कोई ड्रग कोई वैक्सीन नहीं आया। आया भी तो hcq के सम्बन्ध में एक धमाकेदार शोध। 22 मई को विश्वप्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लैन्सेट जो 1823 में शुरू हुआ था तथा न्यू इंगलैंड जर्नल आफ मेडिसिन जो 1812 में शुरू हुआ था एक शोध लेख प्रकाशित होता है, जिसने कोविड -19 की दुनिया में तहलका मचा दिया। इस शोध में कहा गया की hcq कोविड -19 के इलाज में कत्तई उपयोगी नहीं है. इससे मृत्युदर मेंवृद्धि ही हो रही है तथा यह असामान्य रूप से ह्रदय रोग बढ़ा रहा है।

इस शोध के शोधकर्ता के रूप में चार नाम थे। एक -हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के भारतीय मूल के डा मनदीप मेहता ,दो -रुष्टीजवा यूनिवर्सिटी आफ जूरिख के डा फ्रैंक। तीन –यूनिवर्सिटी आफ उटाह के डा अमित पटेल। चौथे हैं को ऑथर के रूप में सपन देसाई जो शिकागो स्थित सर्जीफियर कार्पोरेशन के प्रमुख हैं।

इस शोध का निष्कर्ष डाटाबेस बताया गया जिसे डा सपन देसाई की कंपनी सर्जीफियर ने उपलब्ध कराया। डा देसाई का दावा था की यह डाटा बेस छह महाद्वीप के 671 अस्पतालों के 96 हजार मरीजों का है जिसमें उनके संक्रमण के पूर्व के मेडिकल इतिहास के साथ साथ वर्त्तमान इलाज का मेडिकल इतिहास भी शामिल है।25 मई को WHO ने hcq को प्रतिबंधित कर दिया। विश्वप्रसिद्ध पत्रिका के लेख के प्रभाव से बहुत से देशों की सरकार ने भी hcq के प्रयोग को बंद कर दिया।

इस शोध पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की निगाह पड़ी उन्हें यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं हुआ की इतने कम समय में सर्जीफियर जैसी कंपनी ने इतना विशाल डेटाबेस कैसे इकठ्ठा कर लिया। दुनिया के कई समाचारपत्र मुख्य रूप से दी गार्जियन और दी हिन्दू ने इस प्रकरण की छानबीन शुरू की।

सपन देसाई
सपन देसाई

डा सपन देसाई के सम्बन्ध में बहुत से चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। देसाई के सर्जीफियर कंपनी में कुल पांच कर्मचारी हैं जिसमें से एक साइंस फिक्शन लिखता है दूसरा मॉडल है कोई भी डेटाबेस का जानकार नहीं है। सर्जीफियर की स्थापना 2008 में एक मेडिकल शिक्षा कंपनी के रूप में स्थापित हुई थी जहाँ से मेडिकल की पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित होती थी।दुनिया के वैज्ञानिकों को शक हुआ की इस कंपनी ने कोविड -19 जैसे विश्वव्यापी महामारी के सम्बन्ध में कहीं फर्जी विशाल डेटा बेस के आधार पर निष्कर्ष किसी गलत मंतव्य से तो नहीं निकला है। नाउस ग्रुप के इंटरनेशनल मैनेजमेंट कंसल्टेंसी के चीफ डाटा साइंटिस्ट ने कहा की सर्जीफियर का यह कार्य एक धोखा है जिसमे आकड़ों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है। डा सपन देसाई के ऊपर मेडिकल से सम्बंधित तीन मामले भी दर्ज हैं। विज्ञान सम्बन्धी धमाकेदार प्रयोग वे पहले भी कर चुके हैं। 2008 में एक डिवाइस के नाम पर वेबसाइट पर क्राउड फंडिंग भी शुरू किया ,जिसके बारे में कहा गया की यह डिवाइस नई पीढ़ी को संवर्धित करेगा की वे वह पा सकेंगे जिसे वे असंभव समझते हैं। सपन देसाई ने इसे न्यूरोडायनमिक्स का नाम दिया था। ऐसी स्थिति में विश्व के 180 वैज्ञानिकों ने दोनों शोध पत्रिकाओं को पात्र लिखकर डेटाबेस के आडिट की मांग की

अंततः 4 जून को दोनों प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं ने शोधपत्र को वापस ले लिया और शोधकर्ताओं ने माफ़ी भी मांगी। 4 जून को ही यह बात भी प्रकाश में आई की यह देता 96 हजार मरीजों का नहीं मात्र 15 हजार मरीजों का ही था।

कृपया इसे भी पढ़ें : https://mediaswaraj.com/controversial-lancet-study-on-hydroxychloroquine-retracted/
इस hcq विवाद को जब पहली बार लल्लनटॉप न्यूज चैनल पर सुन रहा था तो सौरभ द्विवेदी का एक कथन मन में घर कर गया कि –डेटा अब दाता हो गया –भिखारी सारी दुनिया दाता एक राम। इस विवाद से विश्व के वैज्ञानिक जगत में हलचल मचाना स्वाभाविक है। एक और दुनिया का आदमी महामारी से भयग्रस्त ,आतंकित है तो दूसरीओर जिस विज्ञानं जगत की और दुनिया का आदमी टकटकी लगाए है वहां लोग फ्राड के करतूतों में लगे हुए हैं। यह घटना शर्मनाक ,निंदनीय ही नहीं अमानवीय और आपराधिक है। समस्त विश्वमानव को अँधेरी गुफा में धकेलने जैसा है।

इस घटना से कई प्रश्न उभरते हैं जिसपर वैज्ञानिक जगत को गंभीरता से चिंतन मनन करना होगा
विश्व के दो प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं ने विश्व की एक महत्वपूर्ण प्रकरण पर शोध प्रकाशित करने से पूर्व प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की राय क्यों नहीं ली ? कोरोना वायरस सारी दुनिया को डसे जा रहा है ,ऐसे महत्वपूर्ण प्रकरण के डेटाबेस की विश्वसनीयता पर शोध पत्रिकाओं को क्या पुष्टि नहीं करनी चाहिए थी ?

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के वैज्ञानिक फर्जी डेटा के झांसे में क्यों आ गए ?
डाटाबेस शोध ,कृत्रिम बौद्धिकता ,क्लाउड कम्प्यूटिंग ,जैसे टर्म न केवल विज्ञान जगत बल्कि आर्थिक और सामाजिक जगत के शोधों में प्रभावित हो रहे हैं जो आभाषी निष्कर्ष के आधार पर दुनिया चलाना चाह रहें हैं.

https://www.sciencemag.org/news/2020/06/mysterious-company-s-coronavirus-papers-top-medical-journals-may-be-unraveling

शोध सत्य की खोज एक पवित्र और मानवता का कार्य है। पिछली दो शताब्दी में विज्ञान के शोधों ने मानवता का जो कल्याण किया है उस परम्परा को चेतनशील बनाये रखने के लिए वैज्ञानिकों को आगे आना होगा।यह घटना क्या यह इंगित नहीं करती की बौद्धिकता के खरीददार टहल रहे हैं चाहे शांत हो चाहे महामारी हो उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता उन्हें बौद्धिक संपत्ति हड़पनी है। बहुत सारी सम्पत्तियाँ हड़प चुके हैं। वैज्ञानिक बुद्धिजीवियों को सावधान रहने आवश्यकता है। यदि विज्ञान ही बिक गया तो क्या शेष रहेगा।

https://marlin-prod.literatumonline.com/…/S0140673620313246…

इस लेख को लिखते हुए अथर्ववेद का एक मन्त्र ध्यान में आया वाणी के स्वामी की वन्दना करते हुए अथर्वकार मन्त्र उच्चारित करता है
वसोषपते नि रमय मय्येवास्तु मयि श्रुतं

अर्थात हे वाणी के स्वामी वाचस्पति द्वारा अध्ययन किये गए वेद शास्त्र धारण करने की मुझे बुद्धि दीजिये।

 

3 Comments

  1. अच्छी जानकारी जुटाई है,
    विज्ञान और चिकित्सा जगत पर
    लिखने वाले गिनती के लोग है.
    उनमें यह प्रयास मील का पत्थर होगा.

  2. आपका लेख विचारोत्तेजक है वर्तमान समय में पूरे विश्व में व्याप्त कोविड-१९ से भी अधिक उसके इर्द गिर्द चल रहे गंभीर विरोधाभास ग्रस्त प्रचार और अभूतपूर्व भ्रामक स्थिति को ही दर्शाता है । मैं HCQ को लेकर चल रहे विवाद को शुरु से ही ध्यान से देख रहा हूँ और समझने की कोशिश कर रहा हूँ । इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हैं :
    १- पहला ये कि HCQ केवल एक प्रोफाइलेक्सिस यानी जो स्वास्थ्य
    कर्मी या डाक्टर कोविड के संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आते हैं उनके लिए ही कुछ नियमों के साथ लिए जाने की सलाह है । यह सलाह इस क़यास पर है कि ये व्यक्ति की संक्रमित होने की संभावना को कम करने या संक्रमण की तीव्रता कम करने के लिए कारगर हो सकती है । इस क़यास के पीछे भी कोई ठोस वैज्ञानिक शोध या आधार नहीं है !

    २- कोविड के इलाज के लिए HCQ दिए जाने की कोई वैज्ञानिकों नहीं है । सीधी सी बात है कि ये एक एंटी बैक्टीरियल दवा है और जो दवा बैक्टीरिया को मारने के लिए हो वह वायरस को मारने के काम में आ सकती है ऐसा कोई अपवाद आज तक तो नहीं सामने आया है ।

    ३-. फ़्रान्स ने अभी हाल में ही लगभग दस पंद्रह दिन पहले HCQ का प्रयोग निषेध करने की घोषणा कर दी है ।
    ४- इंग्लैंड के वैज्ञानिकों और डाक्टरों ने भी इसको ग़ैर ज़रूरी व ख़तरनाक बताया है ।

    ऐसे में हो सकता है कि कुछ लोगों ने उत्साह में और अपने को विज्ञान जगत में स्थापित करने या अन्य किसी बदनीयती से ये
    शोधपत्र लैंसिट जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में छपवाने में तात्कालिक सफलता हासिल कर ली हो लेकिन इसके खुलासे से यह सिद्ध नहीं होता है कि HCQ के समर्थन में जो विचारधारा चल रही है वह सही है । इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक हानि लैंसिट जैसी निर्विवाद रूप से प्रतिष्ठित पत्रिका की साख को हुई है ।
    आज विश्व में कौरोना से भी गंभीर आपदा हर क्षेत्र में चाहे वो पत्रकारिता हो या राजनीति या विज्ञान , विश्वसनीयता के ऊपर लगे प्रश्न चिन्ह रूप में आ पड़ी है और वह हम सबके , और आने वाली पीढ़ियों के लिए , गंभीर मानसिक दबाव व संकट पैदा करने वाली स्थिति है । किस पर विश्वास करें किस पर न करें ?

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