भोजपुरी में फूहड़ता एवं अश्लीलता कैसे दूर हो
किंतु वास्तविक भोजपुरी समाज का सही निरुपण इसके यथार्थ लोकगीतों से समझा जा सकता हैं. कन्यादान के समय गाया जाने वाला भिखारी ठाकुर रचित गीत,”ओरी तर ओरी रे तर बइठे बरनेतिया ” एवं निर्गुण ” भँवरवा के तोहरा संगे जाइ ” किसी को भी भावुक कर सकता है. रोजगार हेतु परदेस जाने वाले की पत्नी की पीड़ा को दर्शाता गीत ‘ रेलीया बैरी ना टीकसवा बैरी, पइसवा बैरी ना, पीया के ले गइले रंगूनवा हो.’ पत्नी के उलाहने को प्रकट करता गीत ‘ बटीया जोहत रहीं सारी रतीया, रतीया कहाँ गववला ना.’
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed